Saturday, June 23, 2007

अपने नौकर खुद बनिये



इतना तो आप कर ही सकते हैं


कमरे की लाइट आँफ़ करें

कूलर में पानी भरें

आंगन के गमलों में पानी दें

बिजली का बिल भरने जाएं


घर में इकठ्ठा हुआ कचरा फ़ैकने जाएं

जिस कमरे से बाहर जा रहे हों
उस कमरे के रेडियो-टीवी का स्विचआँफ़ करें


दिमाग़ जब ठंडा हो परिजनों के लिये
प्रशंसा से भर जाएं और अपने अधीनों के कुशल-मंगल

के लिये प्रार्थना करें.

नौकर जब अवकाश से लौटा हो तो झल्लाएं नहीं ; उससे पूछें:
-तेरे माँ-बाप कैसे हैं;शादी कैसी रही;
-हो गया क्रिया-कर्म तेरे मामा का,अब तेरी बीवी की तबियत कैसी है;
-हो गया तेरे गाँव के मकान का काम पूरा;

ऐसा थोड़े ही है कि आपने किसी को नौकरी पर रखा हुआ है
तो वो इंसान नहीं है.उसकी विवशताओं से सहानभूति रख कर
तो देखिये..कैसी ख़िदमत करता है वो आपकी.

ये सारी बातें गौ़र करने की हैं...सोचिये तो कि नौकर घर का कितना काम करता है.थोड़ा हम भी तो आदत डाल लें..हमने तो बस बाँस बनना सीख लिया है..ध्यान रखिये आने वाले समय में हमें नौकर नाम का प्राणी आसानी से मिलने वाला नहीं.आज से ही शुरू कीजिये..धीरे-धीरे आदत पड़ ही जाती है..यकी़न जानिये आपको वाक़ई अच्छा लगने लगेगा....ये सारे काम मजबूरी में और मन मानकर करें इसके बजाय खुशी-खुशी क्यों नहीं. अच्छा चलिये मत करिये..सोचिये तो सही कि ये सारी रामायण ठीक है कि नहीं...आज न सही ...उजाले में न सही ..कल से ही ...मुंह अंधेरे ही कीजिये..कोई बात नहीं ..शुरू-शुरू में शर्म आती है..बाद में सब आपको शाबासी देंगे...लिखियेगा मन खोलकर कि मेरी बात आपको अच्छी लगी.हाँ..हाँ...मै समझ गया..मै किसी को नहीं बताउंगा कि मेरे कहने पर आप ऐसा कर रहे हैं . मै यही कहूंगा ये सब आप स्व-प्रेरणा से कर रहे हैं

1 comment:

indianrj said...

आज इत्तफाक से आपके ब्लॉग पर आना हुआ. आपकी बातों में क्या जादू है कि एक एक करके सारी पोस्टें पढने का लोभ संवरण नहीं हो पा रहा. बहुत खूब लिख रहे हैं आप और बहुत व्यावहारिक भी. पढ़ते हुए तो ऐसा लग रहा है मानो अब अपनी सब बुराइयों से पीछा छूट ही जाएगा. दुआ ज़रूर कीजियेगा आप.