Saturday, June 23, 2007

शुभ-विचार

नदी के शांत प्रवाह में

मात्र एक कंकड़ से

कोलाहल हो जाता है ;

किंतु जल की धारा धीर-गंभीर और

संयत रूप से पुन:प्रवाहित होती रहती है...


क्षमा-याचना इसी धारा के समान पुनीत होती है.

पुनीत होने के लिये जल-प्रवाह बनना आवश्यक है.

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