जीवन में अनेक जटिलताएं हैं.
जीवन के सुख-दु:ख हमारे सोच पर निर्भर हैं.
इस सच पर कि हम अपने जीवन को किस तरह लेते हैं कि हमारी
ज़िन्दगी का दाख़िल-खा़रिज क्या है ?
एक बार यह स्पष्ट हो जाए तो कई चीज़ें आसान हो जाती हैं.
जब तक यह नहीं होता; हम भटकते रहेंगे....क्लांत और अशांत.
इससे बचने के लिये आवश्यकता है स्वयं को साधने की.
अपने को पहचानने की..किंतु ऐसा प्राय: अनुभव और चिंतन से ही
संभव है.
आत्म-समीक्षा से बढ़कर कोई विश्वविद्यालय नहीं है
जहाँ आप अपने को दीक्षित कर सकते हैं.
आचरण की शुचिता और चरित्र की उदात्तता से
आप अपने जीवन में रस घोल सकते हैं
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