Tuesday, July 24, 2007

जो दिया सो अपना...जो बचा लिया सो सपना


एक नौजवान, जो कि विश्वविद्यालय का छात्र था, एक शाम अपने प्रोफ़ेसर के साथ पैदल घूमने निकला। प्रोफ़ेसर अपने छात्र-छात्राओं से मित्र जैसा व्यवहार करते थे और अपनी सहृदयता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। चलते-चलते दोनों जंगल में दूर निकल गए। रास्ते में उन्हें पुराने जूतों की एक जोड़ी पड़ी मिली। ये जूते एक ग़रीब किसान के थे जो पास के खेत में काम कर रहा था, और जिसका उस दिन का काम लगभग समाप्त हो चला था।


नौजवान ने प्रोफ़ेसर से कहा, "आईए सर, हम उस आदमी से मज़ाक करते हैं। उसके जूते कहीं छुपा देते हैं और हम दोनों झाड़ी में छुप जाते हैं। जब जूते नहीं दिखेंगे तो उस आदमी को परेशान होता देख बड़ा आनंद आएगा।' प्रोफ़ेसर ने कहा, "मेरे दोस्त, किसी ग़रीब की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक नहीं। तुम अमीर हो इसलिए तुम्हें ऐसे काम में मज़ा मिल सकता है। मेरी मानो तो ग़रीब आदमी के हर जूते में एक-एक सिक्का रख दो और मेरे साथ छुप कर उसकी प्रतिक्रिया देखो।' नौजवान ने बात मान ली और सिक्के रखकर अपने प्रोफ़ेसर के साथ झाड़ी के पीछे छुप गया।



थोड़ी देर बाद ही ग़रीब किसान काम को समाप्त कर अपने जूतों के पास आया। उसने कोट पहना तथा एक जूते में पॉंव डाला। जूते में उसे कुछ अड़ा तो उसने हाथ से टटोला और उसे एक सिक्का मिला। उसके चेहरे पर अचानक आश्चर्य के भाव आए और वह बहुत देर तक सिक्के को हाथ में लेकर उलट-पलट कर देखता रहा। उसने आसपास नज़र दौड़ाई पर उसे कोई भी नहीं दिखा। उसने सिक्के को कोट की जेब में रखा और दूसरा जूता पहनने लगा। एक बार फिर उसे बहुत ताज्जुब हुआ जब दूसरे जूते में भी सिक्का मिला। वह बहुत भावुक हो उठा और अपने घुटनों के बल बैठ गया। उसने आसमान की ओर नज़र की तथा प्रार्थना के स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देने लगा। उसने अपनी बीमार एवं लाचार पत्नी तथा घर में भूख से बिलख रहे बच्चों की ओर से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया क्योंकि किसी अनजान व्यक्ति द्वारा उसे ज़रूरत के समय यह मदद मिली थी। उस रात उसके बच्चे भूखे नहीं सोने वाले थे और उसकी पत्नी को दवाई भी मिल रही थी।


नौजवान ने वह दृश्य देखा और बहुत द्रवित हो गया तथा उसकी आँख से आँसू टपकने लगे। प्रोफ़ेसर ने उससे पूछा, "क्या तुम अभी ़ज़्यादा ख़ुश हो या उस समय होते जब तुम उस ग़रीब से मज़ाक करते?' नौजवान बोला, "सर, आज आपने मुझे ऐसा सबक दिया है जिसे मैं जीवनभर नहीं भूलूंगा। मुझे अब इन शब्दों की सच्चाई समझ में आ रही है जो मैं पहले कभी नहीं समझ पाया।



वे शब्द हैं,......"पाने से देना अधिक पुण्य का काम है।'


यदि आप ख़ुशी चाहते हैं:



एक घंटे के लिए..... तो झपकी ले लीजिए



एक दिन के लिए..... तो सैर-सपाटे पर निकल जाईए



एक माह के लिए..... तो शादी कर लीजिए



एक वर्ष के लिए..... तो ढ़ेर सारा धन कमाई



कई वर्षों के लिए..... तो किसी से प्यार कीजिए



जीवनभर के लिए..... तो किसी के लिए कुछ कीजिए

(प्रसन्नता बाँटने और उसका प्यार भरा सबक़ सिखाने वाले मैनेजमेंट गुरू श्री एस. नंद के रचनात्मक प्रयास स्वयं उत्थान को उपरोक्त नीति कथा के लिये विशेष आभार)

Thursday, July 19, 2007

मै और मेरा ईश्वर तो जानता है


एक परिसर में एक मूर्तिकार अपने काम में मसरूफ़ था.बना रहा था एक मूर्ति..एक युवक उस परिसर में पहुँचा और मूर्तिकार की कारीगरी देखने लगा.ईश्वर की जो मूर्ति वह कलाकार गढ़ रहा था ठीक वैसा ही शिल्प उस कलाकार से कुछ दूरी पर बनकर तैयार था.

युवक ने पूछा : क्या एक जैसी दो मूर्तियाँ स्थापित होंगी मंदिर में ?

कलाकार ने कहा नहीं..

तो दूसरी मूर्ति क्यों बना रहे हैं आप...? युवक ने प्रश्न किया.

कलाकार बोला: दर-असल उस मूर्ति की नाक पर एक ख़रोच सी आ गई है..

युवक का अगला प्रश्न था ..इस मूर्ति को तक़रीबन कितना ऊँचा स्थापित करेंगे आप ?

कलाकार ने बताया..लगभग 20 फ़ुट ऊपर.

युवक आश्वर्य से बोला इतनी दूरी पर स्थापित होने के बाद भगवान की नाक पर खरोंच है कौन जानेगा....

कलाकार ने उत्तर दिया बॆटा..मै और मेरा ईश्वर तो जानेंगे न ?


ये नीति कथा इस बात की ओर तो इशारा करती ही है कि हमें अपने कर्म के लिये ईमानदार रहना चाहिये.....और ये भी कि हमारे हाथ से हुई ग़लतियों को स्वीकारने की सचाई भी हम में होना ही चाहिये..क्योंकि मन की अदालत में अंतत: जुर्म साबित हो ही जाता है...और हाँ एक बात और कि हमें अपनी उत्कृष्टता के लिये हमेशा सचेत रहना चाहिये चाहे उसे कोई रेखांकित करे या न करे.

यहाँ हमें ख़लील ज़्रिबान की वह सूक्ति याद हो आती है...


Top quality emerges from culture of care.


आमीन.

Wednesday, July 18, 2007

ज़िन्दगी को उजाला देती एक सह्र्दय जैन संत की बानी

सवा लाख कि.मी. पद-यात्रा कर चुके,पचपन वर्ष पूर्व दीक्षा ले चुके,बंगाल में जन्मे,नौ भाषाओं के जानकार और स्वामी विवेकानंद को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का सर्जक मानने वाले जैन संत आचार्य पदमसागरसूरीश्वरजी इन दिनो चातुर्मास बेला में मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर पधारे हुए हैं. वे एक उदभट वक्ता,गूढ़ चिंतक और धर्म के बारे में अत्यंत सह्र्दय दृष्टिकोण रखने वाले सुह्र्द संत हैं...आज ज़माने को दर-असल ऐसे ही मार्गदर्शकों की ज़रूरत है..उनकी वाणी से निकली ये सूक्तियाँ हमारे मानस को वाक़ई एक नये सोच की ओर प्रशस्त करती है.....
-चैक या ड्राफ़्ट में यदि कोई तकनीकी भूल हो तो बैंक उसे स्वीकार नहीं करती; लौटा देती है. ठीक उसी प्रकार प्रार्थना में पश्चाताप न हो ; संसार की याचना और वासना रूपी तकनीके भूल हो तो वह भी अस्वीकृत हो जाती है.ऐसी कितनी ही प्रार्थनाएं आज तक लौट आईं हैं,उन पर रिमार्क लिखा है...कृपया सुधार कर भेजें.

-मौत से न अपने परिजन बचा सकते हैं , न ही अपना मकान.मज़बूत दीवारें भी मौत को नहीं रोक सकती,न चौकीदार हाथ पकड़ सकता है मौत का ! न कोई डाँक्टर हमें मौत के भय से मुक्त कर सकता है और न ही कोई वक़ील मौत के समक्ष स्टे-आँर्डर ला सकता है..जीवन मृत्यु से घिरा है.केवल अध्यात्म चिंतन ही एकमात्र सुरक्षा कवच है.

-मै सभी का हूँ; सभी मेरे है; मनुष्य के कल्याण में प्रार्थनारत है मेरी भावनाएं.मै किसी वर्ग,वर्ण,समाज या जाति के लिये नहीं; सबके लिये हूँ.मै ईसाइयों का पादरी,मुस्लिमों का फ़कीर,हिन्दुओं का संन्यासी और जैनियों का आचार्य हूँ..आप जिस रूप में चाहे मुझे देख सकते हैं.

- क़ब्र में सोये मुर्दे ने आवाज़ दी...मुझे कौन यहाँ छोड़ गया ?
मेरी पास धन-मकान-ज़ेवर सब कुछ तो था ..मुझे यहाँ अकेला कौन छोड़ गया ?
वहीं से गुज़रते एक कवि ने उत्तर दिया....
सब्र कर..तुझे छोड़ने कोई तेरा दुश्मन नहीं आया था यहाँ.
जिनके लिये तूने सब कुछ किया; वही तेरे सगे वाले तुझे यहाँ आकर छोड़ गये हैं.

- हिन्दु सच्चा हिन्दु बने और गीता के आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करे;
मुसलमान पाक मुसलमान बन जाए और क़ुरान की आयतों को ज़िन्दगी में उतारे;
जैन वास्तविक जैन बन जाए और महावीर की वाणी का अनुसरण करे;
ईसाई खरा ईसाई बने और बाइबल के बतलाए रास्ते पर चल पडे़ ;
सब अपने धर्म ग्रंथों को जाँच लें ; कहीं भी अत्याचार,अनाचार,दुर्व्यवहार,
की सीख नहीं मिलेगी...मिलेगी प्रेम की बानी...एक बार अपने धर्म-ग्रथों को
अविकल पढ़ लीजिये....और फ़िर उस रास्ते पर चलिये...देखिये तो सही;
रामराज्य तो क्या स्वर्ग...जन्नत , हैवन ...धरती पर उतरा समझो.

Sunday, July 15, 2007

खुशी बटोरने का ए.टी.एम.

हाँ ख़ुशी हमारे लिये आँल टाइम मनी ही होना चाहिये.पाँच प्यारे बिंदु हैं जो आपको इस ए.टी.एम. कार्ड का मालिक बना सकते हैं.ध्यान रखियेगा ख़ुश रहने से ज़्यादा बड़ी करंसी अभी ईजाद नहीं हुई है.

- अपने ह्रदय को अन्य लोगों की घृणा से दूर रखिये.

- अपने दिमाग़ को तनाव से दूर रखिये

- सादा रहना शुरू कीजिये

- देने में यक़ीन कीजिये

- कम से कम की अपेक्षा कीजिये.


कब से शुरू कर रहे हैं...?क्या कहा शुरू कर दिया ..तो हमें भी बताइये न..कैसा महसूस कर रहे हैं.

सब बेहतर हो रहा है...ज़िन्दगी क्यों नहीं...कुछ सरल नुस्ख़े

जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धि यह नही है कि माह के अन्त में तनख़्वाह का भुगतान हो जाए। जीवन का लक्ष्य यह भी नहीं है कि हमारे पास एक मर्सिडीज़ कार हो या बैंक खाते में लाखों रूपये पड़े हों या एक ख़ूबसूरत बंगला हो। मेरी नज़र में ज़िंदगी का अंतिम उद्देश्य है, बेहतर ज़िंदगी जीना। हमें एक प्रश्न बार-बार स्वयं से पूछना चाहिए, "मेरे लिए अच्छी ज़िंदगी क्या होगी?' और आपको बार-बार अच्छी बातों की सूची बनाते रहना चाहिए, ऐसी सूची जिसमें आध्यात्म, अर्थ, स्वास्थ्य, रिश्ते और मनोरंजन, सभी का संतुलित रूप से समावेश हो। अच्छी ज़िंदगी में क्या-क्या हो, यह सोचते हुए मैंने भी कुछ चीज़ों का चयन किया है, जिन्हें आपके साथ बांटना चाहता हूँ। ..ज़िन्दगी की सारी आपाधापी में आइये कुछ वक़्त हम अपने लिये भी निकाल लें...ज्योतिष,वास्तु,फ़ेंगशुई और तंत्र-मंत्र के अलावा नीचे लिखी बातों को कभी अपनाकर देखिये और खु़द ब खु़द जान लीजिये ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के कुछ सरल नुस्खे़...ध्यान रहे ! ये सब आपको ही करना पडे़गा..और हाँ ई जो इ है ना उसे गो कर दीजियेगा ..(बड़ा लुच्चा है इगो)एक बात और ..इन नुस्ख़ों को अपनाने के लिये किसी गुरू की आवश्यकता नहीं.

१. उत्पादकता : यदि आप कुछ नहीं करते तो ख़ुश नहीं रह सकते। जीवन की पूर्णता आराम में नहीं है। हमें आराम करना चाहिए किन्तु सिर्फ़ इतना कि हम काम करने की ताकत जुटा सकें। क्या कारण है कि विभिन्न ॠतुएँ हैं, बीज हैं, मिट्टी है, सूरज की रोशनी है, और बारिश है, और जीवन के अन्य चमत्कार हैं? सिर्फ़ इसलिए कि आप उनका उपयोग कर सकें। औरों ने इन पर अपना हाथ जमाया, आपको भी अपना हाथ आगे बढ़ाना है। अतः जीवन का महत्वपूर्ण कदम है उपलब्ध साधनों के साथ कुछ न कुछ करते रहना।


२. अच्छे मित्र : मित्रता दुनियाभर की तमाम प्रणालियों में सबसे कारगर सहयोग-प्रणाली है। इस सुख से कभी वंचित न हों। दोस्ती के लिए हमेशा समय निकालें। इसके लाभ ही लाभ हैं और यह हर तरह से बेजोड़ है। मित्र वो शानदार लोग हैं जो आपके बारे में सब जानते हुए भी आपको चाहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्त की ५३ वर्ष की उम्र में हृदयाघात से मृत्यु हो गई। मित्र आज नहीं है किन्तु यकीन मानिए, वो मेरे लिए बहुत विशेष था। मैं उसके लिए यही कहा करता कि मैं विदेश की किसी जेल में झूठे इल्ज़ाम में क़ैद कर दिया जाता और मुझे सिर्फ़ एक फ़ोन करने की इजाज़त होती तो मैंअपने प्रिय मित्र को ही फ़ोन करता। क्यों? क्योंकि वो आता और मुझे छुड़ा ले जाता। ऐसी होती है दोस्ती। कोई आए और आपको थाम ले। हम सबके और मित्र भी होते हैं। उन्हें फ़ोन करते तो शायद जवाब मिलता, "अरे, जब तुम लौट आओ तो संपर्क करना, हम एक पार्टी करेंगे।' यह स्वाभाविक है कि आपके दो प्रकार के मित्र होंगे, गहराई रखने वाले सच्चे दोस्त या ऊपरी आवरण वाले कामचलाऊ दोस्त।

३. आपकी संस्कृति : आपकी भाषा, संगीत, त्यौहार एवं परम्पराएँ या पहनावा; ये सभी आपको ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है। हमारी सबकी कुछ विशेषताएँ हैं जो सम्मिलित रूप से दुनिया में ऊर्जा, प्रभाव एवं सत्यता लाती हैं। हम कहीं न कहीं संस्कृति से अनिवार्य तौर पर जुड़े हुए हैं।

४ अध्यात्म: आध्यात्म से परिवार की जड़ें मज़बूत होती हैं और राष्ट्र का निर्माण होता है। यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अध्ययन करें, उसका पालन करें और लोगों को शिक्षित भी करें। अपने स्वभाव के आध्यात्मिक पक्ष की अवहेलना न करें क्योंकि उसी से हमारा सही अस्तित्व है और हम कुत्तों, बिल्लियों, चूहों और पक्षियों आदि से अलग श्रेणी में आते हैं।

५. कुछ भी छोड़िए मत : मेरे पालकों ने मुझे सिखाया कि कुछ भी हाथ से मत जाने दो। हर खेल में शामिल रहो। कोई अच्छे प्रदर्शन, नाटक, फ़िल्म या नृत्य से वंचित मत हो। जहॉं-जहॉं जा सकते हो, अवश्य जाओ। संभव हो तो हर अच्छे शो का टिकट ख़रीदिये । नई-नई चीज़ें और स्थान देखिये तथा अपना अनुभव बढाइये; मुझे ऐसा करके हमेशा फ़ायदा हुआ है। ९३ वर्ष की उम्र में मेरे पिताजी के देहांत के पूर्व मैं उन्हें रात को १०.३० या ११ बजे फ़ोन करता तो पाता कि वे घर पर नहीं होते। वे क्लब में या बच्चों के सॉ़फ़्टबॉल मैच में या किसी संगीत की सभा में होते या फ़िर चर्च में मौजूद रहते। इसलिए अच्छा जीवन जीना आवश्यक है। कारण भी बताता हूँ। यदि आप सार्थक जीवन जीएंगे तो बड़ी कमाई करेंगे। ख़ुशी आपके चेहरे पर झलकेगी। आपकी आवाज़ में उसका असर होगा। आप विशिष्ट होंगे एवं आपका करिश्माई व्यक्तित्व होगा। इससे आप हर जगह सफलता प्राप्त करेंगे और प्रसन्न रहेंगे। आपका व्यक्तित्व एवं व्यवसायिक जीवन सुधरेगा।

६. आपका परिवार एवं निकटतम लोग : अपने परिवार एवं निकटस्थ लोगों का ध्यान रखें और वे आपका ध्यान रखेंगे। जब मेरे पिताजी जीवित थे तब मैं अपनी यात्राओं के दौरान उन्हें फ़ोन किया करता। वे प्रायः सुबह का नाश्ता किसानों के साथ लेते थे। छोटा सा कस्बा था। मेरे फ़ोन से उन्हें दिन भर की ख़ुशी मिल जाती। जब में इज़राईल में था तो रात के मध्य उठकर पापा को फ़ोन करता। पापा फ़ोन पर आते और मैं उन्हें बताता कि मैं इज़राईल में था। वे बड़े गर्व से सबको कहते कि बहुत दूर से उनके बेटे का फ़ोन था। यदि एक बाप दिन भर अपनी बेटी का प्यार भरा स्पर्श महसूस करता है तो वह बहुत मज़बूत है। यदि एक पति घर से बाहर रहकर भी पत्नी का प्रेम महसूस करता है तो वह सारा दिन ख़ुश रहेगा। हमारे अपनों की मौजूदगी का अहसास भर हमें ताकतवर और प्रभावशाली बना देता है। इसलिए किसी अवसर को हाथ से मत जाने दीजिए और भरसक लाभ लीजिए। पैगंबर ने कहा था, "जीवन के गुण एवं मूल्य होते हैं पर सबसे बड़ा है एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का ध्यान रखा जाना।' प्यार अनमोल है। दरिया किनारे छोटे से तम्बू में अपने प्रियजन के साथ रहना महल में रहने से अधिक अच्छा है। परस्पर प्रेम जीवन की महानतम् अभिव्यक्ति है। अपनी व्यस्तताओं के चलते भी यह लगातार याद रखिए कि जीवन में आप क्या और किसलिए कर रहे हैं।

ईश्वर करे आपको मनचाहा जीवन मिले जो कि ख़ुशियों एवं उपलब्धियों से भरा हो। यह जाम आपकी सफलता के नाम ! हाँ यदि इन बातों को अपनाकर आप खुशी महसूस करते हैं तो इस ब्लाँग पर जताईयेगा ज़रूर ...शायद कईयों को प्रेरणा मिले..!

-जिन रॉन

(मूल अंग्रेज़ी आलेख का हिन्दी रूपांतर हमें श्री एस.नन्द के सौजन्य से प्राप्त हुआ है ,जिसके लिये हम उनके संगठन स्वयं उत्थान के आभारी हैं)

Tuesday, July 10, 2007

स्त्री ही लक्ष्मी

श्रिय एता: स्त्रियो नाम स्त्कार्या भूतिमिच्छिता
पालिता गुहीता च श्री: स्त्री भवति भारत.
............महर्षि वेद व्यास

ये स्त्रियां ही लक्ष्मी हैं विभूति की इच्छा करने वाले को इनका सत्कार करना चाहिये.
भली प्रकार पालन-पोषण की गई स्त्री लक्ष्मी ही हो जाती है. वेद व्यास की इस बात के एक और बात है और शर्तिया है...शोध कर के देख भी लीजिये...जिस घर में स्त्री दु:खी है,तनावग्रस्त है,अवसाद में है,सताई जा रही है....जान लीजियेगा कि उस घर में धन की किल्लत हमेशा बनी रहेगी.गृहस्वामिनी खु़श...लक्ष्मी आप पर खु़श.

Thursday, July 5, 2007

अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर नहीं बनेगा कभी.

अच्छाई और नेकी करने का मौक़ा ईश्वर सबको देता है.कुछ उसे भुना लेते हैं और कर गुज़रते हैं और कुछ सिर्फ़ सोचते ही रहते हैं और भाग्य को कोसते रहते हैं...या दूसरों के भाग्य से कुढ़ते रह्ते हैं.दर-असल हमारा वैचारिक परिवेश इतना आत्म-केंद्रित हो गया है कि अच्छाइयाँ आसपास होते हुए भी हमें नज़र नहीं आतीं.समय की निर्दयता में नेकी , गुमनामी के कोहरे के बीच धुंधली पड़ जाती है.ऐसे आलम में कोई छोटा सा नेक काम होता दिखाई देता है तो वह जुगनू सा होने के बावजूद हैलोजन सा दमकता नज़र आता है.नेक शुरूआत का कोई मुहूर्त नहीं होता..बस ठान लेना पड़ता है..अच्छाई करने की मन में आए तो कर गुज़रो...उसे खु़द करना पड़ता है....अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर कभी बाज़ार में नहीं आनेवाला.

स्वर्ग नर्क का अंतर

एक दंपत्ति ने उत्सुकता जताते हुए एक महात्मा से पूछा:

स्वर्ग-नर्क में क्या अंतर है स्वामीजी ?


महात्मा मुस्कुराते हुए बोले:

दोनो जगह एक जैसी है, आप स्वयं जाकर देख लें एक बार.

इस समय दोपहर के भोजन का समय है.

दंपत्ति पहले नर्क पहुँचे...खिचडी़ परोसी जा चुकी थी.

लेकिन कोलाहल मचा हुआ था.कारण ? भोजन की चम्मच

चार फ़ीट लम्बी थी..जिससे कोई खा नहीं पा रहा था.



तुरंत वे स्वर्ग पहुँचे..जहाँ वातावरण एकदम शांत था.

यहाँ भोजन व्यवस्था भी नर्क के समान ही थी और यहाँ

भी चम्मच चार फ़ीट की थी...लेकिन एक बड़ा अंतर था नर्क से....



स्वर्ग में हर व्यक्ति अपने सामने बैठे व्यक्ति को खिला रहा था.

Wednesday, July 4, 2007

शुभ-विचार

....जगत में यदि गेस्ट की तरह
रहना आ गया तो समझ लीजिये
मानो पूरा जगत आपका अपनी ही है.

....आप उस दिन वाक़ई समझदार हो जाते
हैं किस दिन आप अपने आपको मूर्ख मानकर
चलते हैं

....क़ामयाबी बेहद मामूली चीज़ है;
वह जीवन का एक पड़ाव तो हो सकती है ;
पूरा जीवन या जीवन लक्ष्य नहीं.वैसे ही जैसे
मुंबई घुमने जा रहे हैं बीच में सूरत स्टेशन आया;
प्लेटफ़ाँर्म पर उतरे ; खाने-पीने की चीज़ें ली और आकर
बैठ गये फ़िर अपनी ट्रेन के डिब्बे में.ऐसा थोडे़ ही है कि
सूरत स्टेशन का बटाटा वड़ा अच्छा लगा तो वहीं बैठ गये.
ऐसा करोगे तो मुंबई कैसे पहुँचेंगे ? कामयाबी सूरत
स्टेशन है...बटाटा वड़ा लिया और चल पडे़ अपनी मंज़िल पर.और फ़िर
मुंबई पहुँचे , अपना काम किया और लौट आए अपने शहर,अपने गाँव ,
अपने घर. तो लौटना तो है ही..
एक समय के बाद बाहर की यात्रा बंद हो जाए..
भीतर की प्रांरभ...

अपनी जीत

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं
एक वे जो काम करते हैं
और दूसरे वे जो श्रेय लेते हैं.
पहली तरह के समूह में शामिल होना
ठीक है ; क्योंकि वहाँ किसी तरह
की प्रतिस्पर्धा नहीं है.

इन्दिरा गाँधी.

Sunday, July 1, 2007

समय ही नहीं बीत रहा...हम भी !


हर कोई लम्बी उम्र की
कामना करता है ;
किंतु कोई भी
बूढा़ नहीं होना चाहता

समय व्यतीत न करें
प्रतिपल जीवन जीएँ
कर्म-पथ पर श्रम की छाँह में
आनन्द रस पीएँ