Tuesday, June 26, 2007

चेहरे की असली चमक

मेरा दोस्त प्रतिदिन दूकान के नौकर को नाश्ते के पैसे देता है

आज दोपहर में ही दूकान बंद कर एक विवाह में भाग लेने

कहीं बाहर जाने के लिये शटर बंद कर रहा था.संयोग से

मैं पहुँचा..उसने कहा आज नौकर खु़श हैं ..

आधे दिन की छुट्टी जो हो रही है.

मैने कहा आज नाश्ते के पैसे दिये कि नहीं ?

वो बोला आप कहते हैं तो दे देता हूं ;

वैसे नाश्ते के पैसे दोपहर बाद देता हूँ.

मैने कहा आप तो विवाह समारोह में जा रहे हैं और दूकान अभी बंद हो रही है ,

इन्हे भी तो कभी-कभी मज़ा करवा दीजिये .मेरा दोस्त वाक़ई सदाशय है..

उसने बिना देरी किये झट से ड्राँअर खोला और पैसे बाँट दिये.



नौकरों के चेहरे ज़्यादा चमक रहे थे..

आधे दिन की छुट्टी..और नाश्ते के पैसे भी.

दूसरे दिन दोस्त से बात हुई..मैने पूछा


कैसी रही शादी...वो बोला अच्छी...सच कहूं नौकरों को नाश्ते के

पैसे देने में जो मज़ा आया और जो सुकून मिला उससे शादी

में जाने का आनन्द भी द्विगुणित हो गया और एक तसल्ली भी रही मन में

कि हम तो किसी भी क़ीमत पर मज़े मार लेते हैं ; बेचारे नौकरों का क्या !

नाश्ते के लिये बमुश्किल सौ रूपये बाँटे और शादी में आने जाने और शगुन करने में

चार हज़ार ख़र्च हो गये; लेकिन प्रेम से नौकरों को दी गई भेंट से एक और रहस्य उजागर हुआ

दूल्हा को ढा़ई हज़ार की अंगूठी दी जबकि नौकरों को सिर्फ़ सौ रूपये बाँटे
लेकिन नौकरों के चेहरे की चमक दूल्हे की चमक से ज़्यादा तेज़ नज़र आ रही थी.

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