Tuesday, September 18, 2007

अपनी अहमियत न जताएँ...दुनिया आपके बग़ैर भी चलेगी

दुनिया और ज़िन्दगी को एक अनुशासन में लाना ही पड़ता है.पढ़ने और सोचने के बाद यथार्थ से भरे कुछ शब्द ज़हन में उभरे हैं ....आपके साथ बाँट रहा हूँ

- अहंकार को घटाओ...सब कुछ उस ऊपर वाले का बनाया हुआ है....आपका नहीं.

- अपनी अहमियत न जताएँ..कोई है जो इस जगत को बहुत ख़ूबसूरती से संचालित कर रहा है
आपके होने के पहले भी दुनिया थी..... आपके बगै़र भी दुनिया चलेगी.

- पूरे जगत के बारे में सोचें...थोड़ा कम स्वार्थी होकर तो देखिये.

- सादा जीवन बसर करें.निसर्ग को नुकसान न पहुँचाएँ...ये आपका बनाया हुआ नहीं है...आप इसे
बिगाड़ने वाले कौन होते हैं.

- दुनिया को वैसा ही देखिये जैसी वह है...उसे अपने हिसाब से ढ़ालने की कोशिश न करें ; नाक़ाम हो
हो जाएँगे. समय अपने हिसाब से चल रहा है...चलता रहेगा...परिस्थियों के साक्षी बनें..न्यायाधिपति
नहीं.

- आपको लगता है दु:ख आपके हवाले कर दिया गया है; सुख दूसरों के खाते में जमा हो गया है ;
आप ग़लत सोचते हैं. ये तयशुदा फ़िल्म है हुज़ूर बस देखते जाइये...एक क़िरदार बने रहिये..उससे
संघर्ष मत कीजिये.. ज़रा ग़ौर कीजिये आपका दु:ख दूसरों से कम है...इस बात की ख़ुशी तो मनाइये.

- और अंत में.....जान लीजिये कि मृत्यु ही एकमात्र चीज़ है जो सुनिश्चित है..आप सबकुछ अपने
से तय कर सकते हैं बस मृत्यु नहीं...वह सुनिश्चित है ...लेकिन कब ? यह अनिश्चित है.तो जो
सुनिश्चित है वही दैवीय है...उसकी आनंदपूर्वक प्रतीक्षा कीजिये.

Friday, August 24, 2007

आत्मा रूपी रजिस्टर में हमारे सब दोष और दुष्कर्म दर्ज़ हो जाते हैं.


हिन्दी में डाँ कलाम रचित आकर्षक शब्द उपहार....

पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डाँ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने राष्ट्राध्यक्ष से ज़्यादा एक चिंतक के रूप में देशवासियों अधिक मोहा है. हिन्दी में प्रकाशित उनकी पुस्तकों को पाठकों ने शानदार प्रतिसाद दिया है. प्रेरणात्मक विचार नाम से डाँ.कलाम रचित एक आकर्षक शब्द उपहार देखने में आया. 6 X 4 इंच के लगभग आर्ट पेपर के सुन्दर से आवरण से सज्जित पुस्तक में बिना किसी भूमिका के चार पंक्तियों में सुरभित मन को छू लेने वाली सूक्तियाँ संकलित की गईं हैं. राष्ट्र-प्रेम,तकनालाँजी,शिक्षा,सुनहरा भविष्य, समाज,संगीत,बच्चे डाँ कलाम के चिंतन का स्थायी स्वर रहे हैं सो ये सुविचार भी इसी के इर्द-गिर्द हैं.अच्छा मशवरा माननेवालों के लिये बता दूँ कि यह प्रकाशन शुभ-प्रसंगों में भेंट किये जाने वाले 101/- लिफ़ाफ़े से बेहतर है. इसी संकलन से संचय किये गए सुविचारों की बानगी :

- जीवन का महत्व इस बात में है कि खु़द क़ामयाबी हासिल करने से अधिक हम दूसरों को
क़ामयाबी हासिल करने में मददगार हो.

- शिक्षक का जीवन अनेक जीवन को सँवारता है.

- अनदेखे,अनजान रास्तों पर चलने के लिये सदैव तैयार रहना चाहिये.

- हमारा सपना है ऐसे देश का निर्माण ,,जिसमें प्रत्येक देशवासी के चेहरे पर
मधुर मुस्कान हो.

- बचपन में दी गई शिक्षा , संस्कार और नैतिकता किसी काँलेज और यूनिवर्सिटी में मिली
औपचारिक शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण होती है.

- शरीर-रूपी मंदिर को आत्मा - रूपी दीपक ही प्रकाशित करता है.

- आत्मा-रूपी रजिस्टर में हमारे सब दोष और दुष्कर्म दर्ज़ हो जाते हैं.

- नेक और ईमानदार व्यक्ति ही अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है.

- लेखक समाज की आत्मा के प्रहरी हैं.

- प्रश्न करते रहिये और उनके उत्तर खोजते रहिये...समय आने पर उत्तर मिलेंगे ही;
और समस्याओं का समाधान भी होगा .

104 पेज का ये शब्द संचयन दो रंगों में बहुत सादा लेकिन सुरूचिपूर्ण तरीक़े से राजपाल एण्ड संस ने प्रकाशित किया है. सारी सूक्तियाँ मन को छूती हैं. प्रत्येक पृष्ठ पर वाँटर मार्क के रूप में कलात्मक चित्र भी हैं जो इन सूक्तियों को पढ़ते वक़्त आँखों को सुकून देते हैं. हिन्दी के प्रसार और प्रचार में भी डाँ.कलाम का यह शब्द संचय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा क्योंकि छोटी छोटी पंक्तियों में रचे गए ये अग्नि मंत्र वाक़ई प्रेरणास्पद तो हैं ही साथ अंग्रेज़ीदाँ युवा पीढ़ी हमारी राष्ट्र-भाषा की ओर भी ले जाते हैं.हिन्दी मे निश्चित ही ऐसे प्रकाशनों की आवश्यकता है जो उपदेशात्मक न होते हुए आपसे बतियाते हुए नज़र आएँ और पढ़ते ही दिन भर आपके मन-मस्तिष्क में स्पंदित होते रहें.

Wednesday, August 15, 2007

दो अलग बातें हैं


किसी व्यक्ति को आदर देना और उसके लिये मन में आदर होना.....दो अलग बातें हैं.


संस्कारों की दुहाई देना और वक़्त आने पर उस पर चलना उतरना.....दो अलग बातें हैं


मीठे शब्द बोलना और वैसा आचरण करना.....दो अलग बातें हैं


किसी से सहमत होने का अभिनय करना और उसकी बात का अनुसरण करना.....दो अलग बातें हैं.


क्रोध पी जाता हूं मै ऐसा कहना और वाक़ई क्रोध पी जाना.....दो अलग बातें हैं.


महान विभूतियों का जीवन-चरित पढ़ना और वैसा बनना.....दो अलग बातें हैं


उदारता की बातें करना और उदार होना.....दो अलग बातें हैं


प्रगतिशीलता पर चलने सीख देना और प्रगतशील होना.....दो अलग बातें हैं.

Wednesday, August 8, 2007

छोटी छोटी बातों में ही तो छुपा है जीवन सार

-हमारी सबसे बड़ी शान गिरने में नहीं ...हर बार गिर कर उठ खड़े हो जाने में हैं.

-मधुर शब्द शहद के समान है .आत्मा के के लिये मधुर और देह के लिये स्वास्थ्यवर्धक.

-बुध्दि परीक्षण करने बैठती है किन्तु विवेक निरीक्षण में ही खु़श रहता है.

-जिन्हें सबसे कम कहना होता है..वही सबसे ज़्यादा बोलते हैं.

-विरोधी ही सबसे बडा़ पथ-प्रदर्शक और अंतत: शुभ-चिंतक साबित होता है.

-अतीत पर क्रोध और भविष्य के भय में पूरा जीवन बीत जाता है
जबकि बीतना चाहिये वर्तमान के लिये.

-दूसरों की अनुकंपा पर जीने वाला मनुष्य भिखारी के समान नहीं..भिखारी ही है.

-विस्तार में हाहाकार है...समेटने में सार है.

-सहो और बचो.

-प्रसन्न रहना चाहते हैं ? दूसरों से अपेक्षा मत करो...दूसरों की अपेक्षा को पूरा करो.

-उस निराकारी ईश्वर को दिन में एक बार अवश्य धन्यवाद दो जिसने आज का दिन सुदिन बना दिया..हमें स्वस्थ रखा..मानसिक रूप से चैतन्य रखा और किसी के लिये मन में शुभ-विचार लाने के लिये प्रेरित किया.इति शुभम.

Tuesday, July 24, 2007

जो दिया सो अपना...जो बचा लिया सो सपना


एक नौजवान, जो कि विश्वविद्यालय का छात्र था, एक शाम अपने प्रोफ़ेसर के साथ पैदल घूमने निकला। प्रोफ़ेसर अपने छात्र-छात्राओं से मित्र जैसा व्यवहार करते थे और अपनी सहृदयता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। चलते-चलते दोनों जंगल में दूर निकल गए। रास्ते में उन्हें पुराने जूतों की एक जोड़ी पड़ी मिली। ये जूते एक ग़रीब किसान के थे जो पास के खेत में काम कर रहा था, और जिसका उस दिन का काम लगभग समाप्त हो चला था।


नौजवान ने प्रोफ़ेसर से कहा, "आईए सर, हम उस आदमी से मज़ाक करते हैं। उसके जूते कहीं छुपा देते हैं और हम दोनों झाड़ी में छुप जाते हैं। जब जूते नहीं दिखेंगे तो उस आदमी को परेशान होता देख बड़ा आनंद आएगा।' प्रोफ़ेसर ने कहा, "मेरे दोस्त, किसी ग़रीब की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक नहीं। तुम अमीर हो इसलिए तुम्हें ऐसे काम में मज़ा मिल सकता है। मेरी मानो तो ग़रीब आदमी के हर जूते में एक-एक सिक्का रख दो और मेरे साथ छुप कर उसकी प्रतिक्रिया देखो।' नौजवान ने बात मान ली और सिक्के रखकर अपने प्रोफ़ेसर के साथ झाड़ी के पीछे छुप गया।



थोड़ी देर बाद ही ग़रीब किसान काम को समाप्त कर अपने जूतों के पास आया। उसने कोट पहना तथा एक जूते में पॉंव डाला। जूते में उसे कुछ अड़ा तो उसने हाथ से टटोला और उसे एक सिक्का मिला। उसके चेहरे पर अचानक आश्चर्य के भाव आए और वह बहुत देर तक सिक्के को हाथ में लेकर उलट-पलट कर देखता रहा। उसने आसपास नज़र दौड़ाई पर उसे कोई भी नहीं दिखा। उसने सिक्के को कोट की जेब में रखा और दूसरा जूता पहनने लगा। एक बार फिर उसे बहुत ताज्जुब हुआ जब दूसरे जूते में भी सिक्का मिला। वह बहुत भावुक हो उठा और अपने घुटनों के बल बैठ गया। उसने आसमान की ओर नज़र की तथा प्रार्थना के स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देने लगा। उसने अपनी बीमार एवं लाचार पत्नी तथा घर में भूख से बिलख रहे बच्चों की ओर से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया क्योंकि किसी अनजान व्यक्ति द्वारा उसे ज़रूरत के समय यह मदद मिली थी। उस रात उसके बच्चे भूखे नहीं सोने वाले थे और उसकी पत्नी को दवाई भी मिल रही थी।


नौजवान ने वह दृश्य देखा और बहुत द्रवित हो गया तथा उसकी आँख से आँसू टपकने लगे। प्रोफ़ेसर ने उससे पूछा, "क्या तुम अभी ़ज़्यादा ख़ुश हो या उस समय होते जब तुम उस ग़रीब से मज़ाक करते?' नौजवान बोला, "सर, आज आपने मुझे ऐसा सबक दिया है जिसे मैं जीवनभर नहीं भूलूंगा। मुझे अब इन शब्दों की सच्चाई समझ में आ रही है जो मैं पहले कभी नहीं समझ पाया।



वे शब्द हैं,......"पाने से देना अधिक पुण्य का काम है।'


यदि आप ख़ुशी चाहते हैं:



एक घंटे के लिए..... तो झपकी ले लीजिए



एक दिन के लिए..... तो सैर-सपाटे पर निकल जाईए



एक माह के लिए..... तो शादी कर लीजिए



एक वर्ष के लिए..... तो ढ़ेर सारा धन कमाई



कई वर्षों के लिए..... तो किसी से प्यार कीजिए



जीवनभर के लिए..... तो किसी के लिए कुछ कीजिए

(प्रसन्नता बाँटने और उसका प्यार भरा सबक़ सिखाने वाले मैनेजमेंट गुरू श्री एस. नंद के रचनात्मक प्रयास स्वयं उत्थान को उपरोक्त नीति कथा के लिये विशेष आभार)

Thursday, July 19, 2007

मै और मेरा ईश्वर तो जानता है


एक परिसर में एक मूर्तिकार अपने काम में मसरूफ़ था.बना रहा था एक मूर्ति..एक युवक उस परिसर में पहुँचा और मूर्तिकार की कारीगरी देखने लगा.ईश्वर की जो मूर्ति वह कलाकार गढ़ रहा था ठीक वैसा ही शिल्प उस कलाकार से कुछ दूरी पर बनकर तैयार था.

युवक ने पूछा : क्या एक जैसी दो मूर्तियाँ स्थापित होंगी मंदिर में ?

कलाकार ने कहा नहीं..

तो दूसरी मूर्ति क्यों बना रहे हैं आप...? युवक ने प्रश्न किया.

कलाकार बोला: दर-असल उस मूर्ति की नाक पर एक ख़रोच सी आ गई है..

युवक का अगला प्रश्न था ..इस मूर्ति को तक़रीबन कितना ऊँचा स्थापित करेंगे आप ?

कलाकार ने बताया..लगभग 20 फ़ुट ऊपर.

युवक आश्वर्य से बोला इतनी दूरी पर स्थापित होने के बाद भगवान की नाक पर खरोंच है कौन जानेगा....

कलाकार ने उत्तर दिया बॆटा..मै और मेरा ईश्वर तो जानेंगे न ?


ये नीति कथा इस बात की ओर तो इशारा करती ही है कि हमें अपने कर्म के लिये ईमानदार रहना चाहिये.....और ये भी कि हमारे हाथ से हुई ग़लतियों को स्वीकारने की सचाई भी हम में होना ही चाहिये..क्योंकि मन की अदालत में अंतत: जुर्म साबित हो ही जाता है...और हाँ एक बात और कि हमें अपनी उत्कृष्टता के लिये हमेशा सचेत रहना चाहिये चाहे उसे कोई रेखांकित करे या न करे.

यहाँ हमें ख़लील ज़्रिबान की वह सूक्ति याद हो आती है...


Top quality emerges from culture of care.


आमीन.

Wednesday, July 18, 2007

ज़िन्दगी को उजाला देती एक सह्र्दय जैन संत की बानी

सवा लाख कि.मी. पद-यात्रा कर चुके,पचपन वर्ष पूर्व दीक्षा ले चुके,बंगाल में जन्मे,नौ भाषाओं के जानकार और स्वामी विवेकानंद को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का सर्जक मानने वाले जैन संत आचार्य पदमसागरसूरीश्वरजी इन दिनो चातुर्मास बेला में मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर पधारे हुए हैं. वे एक उदभट वक्ता,गूढ़ चिंतक और धर्म के बारे में अत्यंत सह्र्दय दृष्टिकोण रखने वाले सुह्र्द संत हैं...आज ज़माने को दर-असल ऐसे ही मार्गदर्शकों की ज़रूरत है..उनकी वाणी से निकली ये सूक्तियाँ हमारे मानस को वाक़ई एक नये सोच की ओर प्रशस्त करती है.....
-चैक या ड्राफ़्ट में यदि कोई तकनीकी भूल हो तो बैंक उसे स्वीकार नहीं करती; लौटा देती है. ठीक उसी प्रकार प्रार्थना में पश्चाताप न हो ; संसार की याचना और वासना रूपी तकनीके भूल हो तो वह भी अस्वीकृत हो जाती है.ऐसी कितनी ही प्रार्थनाएं आज तक लौट आईं हैं,उन पर रिमार्क लिखा है...कृपया सुधार कर भेजें.

-मौत से न अपने परिजन बचा सकते हैं , न ही अपना मकान.मज़बूत दीवारें भी मौत को नहीं रोक सकती,न चौकीदार हाथ पकड़ सकता है मौत का ! न कोई डाँक्टर हमें मौत के भय से मुक्त कर सकता है और न ही कोई वक़ील मौत के समक्ष स्टे-आँर्डर ला सकता है..जीवन मृत्यु से घिरा है.केवल अध्यात्म चिंतन ही एकमात्र सुरक्षा कवच है.

-मै सभी का हूँ; सभी मेरे है; मनुष्य के कल्याण में प्रार्थनारत है मेरी भावनाएं.मै किसी वर्ग,वर्ण,समाज या जाति के लिये नहीं; सबके लिये हूँ.मै ईसाइयों का पादरी,मुस्लिमों का फ़कीर,हिन्दुओं का संन्यासी और जैनियों का आचार्य हूँ..आप जिस रूप में चाहे मुझे देख सकते हैं.

- क़ब्र में सोये मुर्दे ने आवाज़ दी...मुझे कौन यहाँ छोड़ गया ?
मेरी पास धन-मकान-ज़ेवर सब कुछ तो था ..मुझे यहाँ अकेला कौन छोड़ गया ?
वहीं से गुज़रते एक कवि ने उत्तर दिया....
सब्र कर..तुझे छोड़ने कोई तेरा दुश्मन नहीं आया था यहाँ.
जिनके लिये तूने सब कुछ किया; वही तेरे सगे वाले तुझे यहाँ आकर छोड़ गये हैं.

- हिन्दु सच्चा हिन्दु बने और गीता के आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करे;
मुसलमान पाक मुसलमान बन जाए और क़ुरान की आयतों को ज़िन्दगी में उतारे;
जैन वास्तविक जैन बन जाए और महावीर की वाणी का अनुसरण करे;
ईसाई खरा ईसाई बने और बाइबल के बतलाए रास्ते पर चल पडे़ ;
सब अपने धर्म ग्रंथों को जाँच लें ; कहीं भी अत्याचार,अनाचार,दुर्व्यवहार,
की सीख नहीं मिलेगी...मिलेगी प्रेम की बानी...एक बार अपने धर्म-ग्रथों को
अविकल पढ़ लीजिये....और फ़िर उस रास्ते पर चलिये...देखिये तो सही;
रामराज्य तो क्या स्वर्ग...जन्नत , हैवन ...धरती पर उतरा समझो.

Sunday, July 15, 2007

खुशी बटोरने का ए.टी.एम.

हाँ ख़ुशी हमारे लिये आँल टाइम मनी ही होना चाहिये.पाँच प्यारे बिंदु हैं जो आपको इस ए.टी.एम. कार्ड का मालिक बना सकते हैं.ध्यान रखियेगा ख़ुश रहने से ज़्यादा बड़ी करंसी अभी ईजाद नहीं हुई है.

- अपने ह्रदय को अन्य लोगों की घृणा से दूर रखिये.

- अपने दिमाग़ को तनाव से दूर रखिये

- सादा रहना शुरू कीजिये

- देने में यक़ीन कीजिये

- कम से कम की अपेक्षा कीजिये.


कब से शुरू कर रहे हैं...?क्या कहा शुरू कर दिया ..तो हमें भी बताइये न..कैसा महसूस कर रहे हैं.

सब बेहतर हो रहा है...ज़िन्दगी क्यों नहीं...कुछ सरल नुस्ख़े

जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धि यह नही है कि माह के अन्त में तनख़्वाह का भुगतान हो जाए। जीवन का लक्ष्य यह भी नहीं है कि हमारे पास एक मर्सिडीज़ कार हो या बैंक खाते में लाखों रूपये पड़े हों या एक ख़ूबसूरत बंगला हो। मेरी नज़र में ज़िंदगी का अंतिम उद्देश्य है, बेहतर ज़िंदगी जीना। हमें एक प्रश्न बार-बार स्वयं से पूछना चाहिए, "मेरे लिए अच्छी ज़िंदगी क्या होगी?' और आपको बार-बार अच्छी बातों की सूची बनाते रहना चाहिए, ऐसी सूची जिसमें आध्यात्म, अर्थ, स्वास्थ्य, रिश्ते और मनोरंजन, सभी का संतुलित रूप से समावेश हो। अच्छी ज़िंदगी में क्या-क्या हो, यह सोचते हुए मैंने भी कुछ चीज़ों का चयन किया है, जिन्हें आपके साथ बांटना चाहता हूँ। ..ज़िन्दगी की सारी आपाधापी में आइये कुछ वक़्त हम अपने लिये भी निकाल लें...ज्योतिष,वास्तु,फ़ेंगशुई और तंत्र-मंत्र के अलावा नीचे लिखी बातों को कभी अपनाकर देखिये और खु़द ब खु़द जान लीजिये ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के कुछ सरल नुस्खे़...ध्यान रहे ! ये सब आपको ही करना पडे़गा..और हाँ ई जो इ है ना उसे गो कर दीजियेगा ..(बड़ा लुच्चा है इगो)एक बात और ..इन नुस्ख़ों को अपनाने के लिये किसी गुरू की आवश्यकता नहीं.

१. उत्पादकता : यदि आप कुछ नहीं करते तो ख़ुश नहीं रह सकते। जीवन की पूर्णता आराम में नहीं है। हमें आराम करना चाहिए किन्तु सिर्फ़ इतना कि हम काम करने की ताकत जुटा सकें। क्या कारण है कि विभिन्न ॠतुएँ हैं, बीज हैं, मिट्टी है, सूरज की रोशनी है, और बारिश है, और जीवन के अन्य चमत्कार हैं? सिर्फ़ इसलिए कि आप उनका उपयोग कर सकें। औरों ने इन पर अपना हाथ जमाया, आपको भी अपना हाथ आगे बढ़ाना है। अतः जीवन का महत्वपूर्ण कदम है उपलब्ध साधनों के साथ कुछ न कुछ करते रहना।


२. अच्छे मित्र : मित्रता दुनियाभर की तमाम प्रणालियों में सबसे कारगर सहयोग-प्रणाली है। इस सुख से कभी वंचित न हों। दोस्ती के लिए हमेशा समय निकालें। इसके लाभ ही लाभ हैं और यह हर तरह से बेजोड़ है। मित्र वो शानदार लोग हैं जो आपके बारे में सब जानते हुए भी आपको चाहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मेरे सबसे अज़ीज़ दोस्त की ५३ वर्ष की उम्र में हृदयाघात से मृत्यु हो गई। मित्र आज नहीं है किन्तु यकीन मानिए, वो मेरे लिए बहुत विशेष था। मैं उसके लिए यही कहा करता कि मैं विदेश की किसी जेल में झूठे इल्ज़ाम में क़ैद कर दिया जाता और मुझे सिर्फ़ एक फ़ोन करने की इजाज़त होती तो मैंअपने प्रिय मित्र को ही फ़ोन करता। क्यों? क्योंकि वो आता और मुझे छुड़ा ले जाता। ऐसी होती है दोस्ती। कोई आए और आपको थाम ले। हम सबके और मित्र भी होते हैं। उन्हें फ़ोन करते तो शायद जवाब मिलता, "अरे, जब तुम लौट आओ तो संपर्क करना, हम एक पार्टी करेंगे।' यह स्वाभाविक है कि आपके दो प्रकार के मित्र होंगे, गहराई रखने वाले सच्चे दोस्त या ऊपरी आवरण वाले कामचलाऊ दोस्त।

३. आपकी संस्कृति : आपकी भाषा, संगीत, त्यौहार एवं परम्पराएँ या पहनावा; ये सभी आपको ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है। हमारी सबकी कुछ विशेषताएँ हैं जो सम्मिलित रूप से दुनिया में ऊर्जा, प्रभाव एवं सत्यता लाती हैं। हम कहीं न कहीं संस्कृति से अनिवार्य तौर पर जुड़े हुए हैं।

४ अध्यात्म: आध्यात्म से परिवार की जड़ें मज़बूत होती हैं और राष्ट्र का निर्माण होता है। यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अध्ययन करें, उसका पालन करें और लोगों को शिक्षित भी करें। अपने स्वभाव के आध्यात्मिक पक्ष की अवहेलना न करें क्योंकि उसी से हमारा सही अस्तित्व है और हम कुत्तों, बिल्लियों, चूहों और पक्षियों आदि से अलग श्रेणी में आते हैं।

५. कुछ भी छोड़िए मत : मेरे पालकों ने मुझे सिखाया कि कुछ भी हाथ से मत जाने दो। हर खेल में शामिल रहो। कोई अच्छे प्रदर्शन, नाटक, फ़िल्म या नृत्य से वंचित मत हो। जहॉं-जहॉं जा सकते हो, अवश्य जाओ। संभव हो तो हर अच्छे शो का टिकट ख़रीदिये । नई-नई चीज़ें और स्थान देखिये तथा अपना अनुभव बढाइये; मुझे ऐसा करके हमेशा फ़ायदा हुआ है। ९३ वर्ष की उम्र में मेरे पिताजी के देहांत के पूर्व मैं उन्हें रात को १०.३० या ११ बजे फ़ोन करता तो पाता कि वे घर पर नहीं होते। वे क्लब में या बच्चों के सॉ़फ़्टबॉल मैच में या किसी संगीत की सभा में होते या फ़िर चर्च में मौजूद रहते। इसलिए अच्छा जीवन जीना आवश्यक है। कारण भी बताता हूँ। यदि आप सार्थक जीवन जीएंगे तो बड़ी कमाई करेंगे। ख़ुशी आपके चेहरे पर झलकेगी। आपकी आवाज़ में उसका असर होगा। आप विशिष्ट होंगे एवं आपका करिश्माई व्यक्तित्व होगा। इससे आप हर जगह सफलता प्राप्त करेंगे और प्रसन्न रहेंगे। आपका व्यक्तित्व एवं व्यवसायिक जीवन सुधरेगा।

६. आपका परिवार एवं निकटतम लोग : अपने परिवार एवं निकटस्थ लोगों का ध्यान रखें और वे आपका ध्यान रखेंगे। जब मेरे पिताजी जीवित थे तब मैं अपनी यात्राओं के दौरान उन्हें फ़ोन किया करता। वे प्रायः सुबह का नाश्ता किसानों के साथ लेते थे। छोटा सा कस्बा था। मेरे फ़ोन से उन्हें दिन भर की ख़ुशी मिल जाती। जब में इज़राईल में था तो रात के मध्य उठकर पापा को फ़ोन करता। पापा फ़ोन पर आते और मैं उन्हें बताता कि मैं इज़राईल में था। वे बड़े गर्व से सबको कहते कि बहुत दूर से उनके बेटे का फ़ोन था। यदि एक बाप दिन भर अपनी बेटी का प्यार भरा स्पर्श महसूस करता है तो वह बहुत मज़बूत है। यदि एक पति घर से बाहर रहकर भी पत्नी का प्रेम महसूस करता है तो वह सारा दिन ख़ुश रहेगा। हमारे अपनों की मौजूदगी का अहसास भर हमें ताकतवर और प्रभावशाली बना देता है। इसलिए किसी अवसर को हाथ से मत जाने दीजिए और भरसक लाभ लीजिए। पैगंबर ने कहा था, "जीवन के गुण एवं मूल्य होते हैं पर सबसे बड़ा है एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का ध्यान रखा जाना।' प्यार अनमोल है। दरिया किनारे छोटे से तम्बू में अपने प्रियजन के साथ रहना महल में रहने से अधिक अच्छा है। परस्पर प्रेम जीवन की महानतम् अभिव्यक्ति है। अपनी व्यस्तताओं के चलते भी यह लगातार याद रखिए कि जीवन में आप क्या और किसलिए कर रहे हैं।

ईश्वर करे आपको मनचाहा जीवन मिले जो कि ख़ुशियों एवं उपलब्धियों से भरा हो। यह जाम आपकी सफलता के नाम ! हाँ यदि इन बातों को अपनाकर आप खुशी महसूस करते हैं तो इस ब्लाँग पर जताईयेगा ज़रूर ...शायद कईयों को प्रेरणा मिले..!

-जिन रॉन

(मूल अंग्रेज़ी आलेख का हिन्दी रूपांतर हमें श्री एस.नन्द के सौजन्य से प्राप्त हुआ है ,जिसके लिये हम उनके संगठन स्वयं उत्थान के आभारी हैं)

Tuesday, July 10, 2007

स्त्री ही लक्ष्मी

श्रिय एता: स्त्रियो नाम स्त्कार्या भूतिमिच्छिता
पालिता गुहीता च श्री: स्त्री भवति भारत.
............महर्षि वेद व्यास

ये स्त्रियां ही लक्ष्मी हैं विभूति की इच्छा करने वाले को इनका सत्कार करना चाहिये.
भली प्रकार पालन-पोषण की गई स्त्री लक्ष्मी ही हो जाती है. वेद व्यास की इस बात के एक और बात है और शर्तिया है...शोध कर के देख भी लीजिये...जिस घर में स्त्री दु:खी है,तनावग्रस्त है,अवसाद में है,सताई जा रही है....जान लीजियेगा कि उस घर में धन की किल्लत हमेशा बनी रहेगी.गृहस्वामिनी खु़श...लक्ष्मी आप पर खु़श.

Thursday, July 5, 2007

अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर नहीं बनेगा कभी.

अच्छाई और नेकी करने का मौक़ा ईश्वर सबको देता है.कुछ उसे भुना लेते हैं और कर गुज़रते हैं और कुछ सिर्फ़ सोचते ही रहते हैं और भाग्य को कोसते रहते हैं...या दूसरों के भाग्य से कुढ़ते रह्ते हैं.दर-असल हमारा वैचारिक परिवेश इतना आत्म-केंद्रित हो गया है कि अच्छाइयाँ आसपास होते हुए भी हमें नज़र नहीं आतीं.समय की निर्दयता में नेकी , गुमनामी के कोहरे के बीच धुंधली पड़ जाती है.ऐसे आलम में कोई छोटा सा नेक काम होता दिखाई देता है तो वह जुगनू सा होने के बावजूद हैलोजन सा दमकता नज़र आता है.नेक शुरूआत का कोई मुहूर्त नहीं होता..बस ठान लेना पड़ता है..अच्छाई करने की मन में आए तो कर गुज़रो...उसे खु़द करना पड़ता है....अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर कभी बाज़ार में नहीं आनेवाला.

स्वर्ग नर्क का अंतर

एक दंपत्ति ने उत्सुकता जताते हुए एक महात्मा से पूछा:

स्वर्ग-नर्क में क्या अंतर है स्वामीजी ?


महात्मा मुस्कुराते हुए बोले:

दोनो जगह एक जैसी है, आप स्वयं जाकर देख लें एक बार.

इस समय दोपहर के भोजन का समय है.

दंपत्ति पहले नर्क पहुँचे...खिचडी़ परोसी जा चुकी थी.

लेकिन कोलाहल मचा हुआ था.कारण ? भोजन की चम्मच

चार फ़ीट लम्बी थी..जिससे कोई खा नहीं पा रहा था.



तुरंत वे स्वर्ग पहुँचे..जहाँ वातावरण एकदम शांत था.

यहाँ भोजन व्यवस्था भी नर्क के समान ही थी और यहाँ

भी चम्मच चार फ़ीट की थी...लेकिन एक बड़ा अंतर था नर्क से....



स्वर्ग में हर व्यक्ति अपने सामने बैठे व्यक्ति को खिला रहा था.

Wednesday, July 4, 2007

शुभ-विचार

....जगत में यदि गेस्ट की तरह
रहना आ गया तो समझ लीजिये
मानो पूरा जगत आपका अपनी ही है.

....आप उस दिन वाक़ई समझदार हो जाते
हैं किस दिन आप अपने आपको मूर्ख मानकर
चलते हैं

....क़ामयाबी बेहद मामूली चीज़ है;
वह जीवन का एक पड़ाव तो हो सकती है ;
पूरा जीवन या जीवन लक्ष्य नहीं.वैसे ही जैसे
मुंबई घुमने जा रहे हैं बीच में सूरत स्टेशन आया;
प्लेटफ़ाँर्म पर उतरे ; खाने-पीने की चीज़ें ली और आकर
बैठ गये फ़िर अपनी ट्रेन के डिब्बे में.ऐसा थोडे़ ही है कि
सूरत स्टेशन का बटाटा वड़ा अच्छा लगा तो वहीं बैठ गये.
ऐसा करोगे तो मुंबई कैसे पहुँचेंगे ? कामयाबी सूरत
स्टेशन है...बटाटा वड़ा लिया और चल पडे़ अपनी मंज़िल पर.और फ़िर
मुंबई पहुँचे , अपना काम किया और लौट आए अपने शहर,अपने गाँव ,
अपने घर. तो लौटना तो है ही..
एक समय के बाद बाहर की यात्रा बंद हो जाए..
भीतर की प्रांरभ...

अपनी जीत

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं
एक वे जो काम करते हैं
और दूसरे वे जो श्रेय लेते हैं.
पहली तरह के समूह में शामिल होना
ठीक है ; क्योंकि वहाँ किसी तरह
की प्रतिस्पर्धा नहीं है.

इन्दिरा गाँधी.

Sunday, July 1, 2007

समय ही नहीं बीत रहा...हम भी !


हर कोई लम्बी उम्र की
कामना करता है ;
किंतु कोई भी
बूढा़ नहीं होना चाहता

समय व्यतीत न करें
प्रतिपल जीवन जीएँ
कर्म-पथ पर श्रम की छाँह में
आनन्द रस पीएँ

Friday, June 29, 2007

ध्यान दें ! चिठ्ठी का जवाब न देने वाले आलसी

आपके यहां किसी का पत्र आया
किसी ने शादी का निमंत्रण भेजा
किसी का एस.एम.एस.आया.

आप तो सुस्त बैठे हैं भाई...
किसी ने किसी खा़स वजह से आपको याद किया होगा.
आपका नाम याद किया होगा.
आपका पता ढूंढा होगा.
टिकिट चिपकाया होगा.
कुरियर वाले तक देने गया होगा.
निमंत्रण होगा तो हो सकता है
खु़द देने आया होगा
एस.एम.एस.किया होगा तो भी दो-तीन मिनट तो लगे ही होंगे
टाइप करने में

और हां ई-मेल किया होगा (दो मिनट मान लेते हैं कि किसी और की मेल ही फ़ाँरवर्ड की होगी)

आप जवाब तो दीजिये हुज़ूर ....क्या कहा लिखना नहीं आता..
कोई बात नहीं ...सिर्फ़ इतना लिख दीजिय धन्यवाद...
छोटा हो गया...चलिये मै लिख देता हूं एक सर्व-कालिक ..सर्व-अवसर-सर्व-प्रसंग
यानी all occasions जवाब...लेकिन एक वादा चाहिये..आप किसी भी आमंत्रण या संदेश या कम्युनिकेशनको अनुत्तरित नहीं रखेंगे.



प्रिय...आदरणीय....आत्मन..(उम्र और संबंध के हिसाब से तय कर लें)


आपका आमंत्रण / पत्र / संदेश मिला.
आभारी हूं...आपने स्नेहपूर्वक याद किया.
कामना करता हूं/करती हूं कि आपका आयोजन
उल्लासपूर्ण संपन्न होगा/हो गया होगा.

आपके पूरे परिवार/संस्थान को मेरी बधाइयाँ.

आगे भी यही आत्मीयता बनाए रखियेगा.


मंगलकामनाओं के साथ.....

शुभ-विचार

सिर्फ़ उसी से कुछ ग़लत नही होता
जो कुछ करता ही नहीं

पहले अपनी उपलब्धियों का मूल्यांकन करो
फ़िर कोई ख़तरा मोल लो.

जब एक बूढा़ आदमी मरता है तो एक
लायब्रेरी जल कर खा़क हो जाती है.

जो एक विद्यालय खोलता है;
वह एक जेल बंद करता है.

Wednesday, June 27, 2007

माता-पिता के लिये

न माया चाहिये
न काया चाहिये
हमें तो बस आपका
साया चाहिये.

शुभ-विचार

अच्छाई करने का अवसर ईश्वर सबको
देता है....बिरले ही होते हैं जो इस अवसर
को भुना पाते हैं.जो ऐसा कर गुज़रता है;
आत्मिक शांति पाता है.
जो नहीं कर पाता वह भाग्य को कोसता
ही रहता है और चिढ़ता उन लोगों से
जो किसी के लिये कुछ अच्छा कर के
आनन्दित रहते हैं

जीवन की गंध

जीवन में अनेक जटिलताएं हैं.

जीवन के सुख-दु:ख हमारे सोच पर निर्भर हैं.

इस सच पर कि हम अपने जीवन को किस तरह लेते हैं कि हमारी

ज़िन्दगी का दाख़िल-खा़रिज क्या है ?

एक बार यह स्पष्ट हो जाए तो कई चीज़ें आसान हो जाती हैं.

जब तक यह नहीं होता; हम भटकते रहेंगे....क्लांत और अशांत.

इससे बचने के लिये आवश्यकता है स्वयं को साधने की.

अपने को पहचानने की..किंतु ऐसा प्राय: अनुभव और चिंतन से ही

संभव है.

आत्म-समीक्षा से बढ़कर कोई विश्वविद्यालय नहीं है

जहाँ आप अपने को दीक्षित कर सकते हैं.

आचरण की शुचिता और चरित्र की उदात्तता से

आप अपने जीवन में रस घोल सकते हैं

समझ लो

अपनों से मिली आलोचना
बेगानों से मिली
प्रशंसा से ज़्यादा
मूल्यवान होती है.

Tuesday, June 26, 2007

चेहरे की असली चमक

मेरा दोस्त प्रतिदिन दूकान के नौकर को नाश्ते के पैसे देता है

आज दोपहर में ही दूकान बंद कर एक विवाह में भाग लेने

कहीं बाहर जाने के लिये शटर बंद कर रहा था.संयोग से

मैं पहुँचा..उसने कहा आज नौकर खु़श हैं ..

आधे दिन की छुट्टी जो हो रही है.

मैने कहा आज नाश्ते के पैसे दिये कि नहीं ?

वो बोला आप कहते हैं तो दे देता हूं ;

वैसे नाश्ते के पैसे दोपहर बाद देता हूँ.

मैने कहा आप तो विवाह समारोह में जा रहे हैं और दूकान अभी बंद हो रही है ,

इन्हे भी तो कभी-कभी मज़ा करवा दीजिये .मेरा दोस्त वाक़ई सदाशय है..

उसने बिना देरी किये झट से ड्राँअर खोला और पैसे बाँट दिये.



नौकरों के चेहरे ज़्यादा चमक रहे थे..

आधे दिन की छुट्टी..और नाश्ते के पैसे भी.

दूसरे दिन दोस्त से बात हुई..मैने पूछा


कैसी रही शादी...वो बोला अच्छी...सच कहूं नौकरों को नाश्ते के

पैसे देने में जो मज़ा आया और जो सुकून मिला उससे शादी

में जाने का आनन्द भी द्विगुणित हो गया और एक तसल्ली भी रही मन में

कि हम तो किसी भी क़ीमत पर मज़े मार लेते हैं ; बेचारे नौकरों का क्या !

नाश्ते के लिये बमुश्किल सौ रूपये बाँटे और शादी में आने जाने और शगुन करने में

चार हज़ार ख़र्च हो गये; लेकिन प्रेम से नौकरों को दी गई भेंट से एक और रहस्य उजागर हुआ

दूल्हा को ढा़ई हज़ार की अंगूठी दी जबकि नौकरों को सिर्फ़ सौ रूपये बाँटे
लेकिन नौकरों के चेहरे की चमक दूल्हे की चमक से ज़्यादा तेज़ नज़र आ रही थी.

जीवन लीला

मैने पिता को फ़ोन लगाया
उनका स्वर भर्राया था.
मैने पूछा आवाज़ भारी क्यों है आपकी ?
उन्होने कहा..
बस अभी सोकर उठा हूँ..
मै पूछ नहीं पाया..
तबियत तो ख़राब नहीं आपकी ?
डर रहा था...
कहीं अस्पताल/डाँक्टर के यहाँ ले चलने को न कह दें.

जीवन लीला

मैने बच्चे से कहा

बेटा ज़रा नीचे वाली मंज़िल पर

मेरी टेबल पर मेरे मोबाइल का

चार्जर रखा है ....ला दो



उसने सुना नहीं



मैने अपनी बात को दोहराया



उसने टीवी की आवाज़ बढा़ दी.



मैने कहा बेटा ला दो प्लीज़.



उसने फिर नहीं सुना.



मैने नि:ष्कर्ष निकाला ..थोडा़ कड़वा है



जो निचली मंज़िल से चार्जर न लाकर दे



वह अस्पताल की निचली मंज़िल से एक्स-रे रिपोर्ट,

कैसे लाएगा ? यूरीन सेम्पल पैथ-लैब में देने कैसे जाएगा ?

और आपके मरने पर स्मशान तक कंधे पर उठा कर ले जाएगा ?



मुझे लगता है मै ग़लतफ़हमी में जी रहा हूँ !

जीवन लीला

बच्चे जब बहस कर के बड़ों

को जवाब देने लगते हैं तो दु:ख होता है....

लाज़मी है.

लेकिन यह भी सोचें कि आपने भी

तो अपने अभिभावकों से ऐसी ही

मुंहजोरी की थी.

हुज़ूर आपके साथ बच्चे दुर्व्यवहार नहीं कर रहे...

वे तो आपको फ़्लैश-बैक दिखा रहे हैं..उसी फ़िल्म का

जिसके मौन पात्र आपके माता-पिता थे...

बरसों पहले.

Monday, June 25, 2007

शुभ-विचार

हम बुलंदियों के शिखर तक

यश के झोंकों में उड़ते भले ही पहुँच जाएँ,

लेकिन ज़मीन की ग़र्द के उन कणों को न भूलें,

जो हमें बुलंदियों तक पहुँचाने के लिये

खु़द हवा के थपेडे़ खाते रहे हैं

Saturday, June 23, 2007

अपने नौकर खुद बनिये



इतना तो आप कर ही सकते हैं


कमरे की लाइट आँफ़ करें

कूलर में पानी भरें

आंगन के गमलों में पानी दें

बिजली का बिल भरने जाएं


घर में इकठ्ठा हुआ कचरा फ़ैकने जाएं

जिस कमरे से बाहर जा रहे हों
उस कमरे के रेडियो-टीवी का स्विचआँफ़ करें


दिमाग़ जब ठंडा हो परिजनों के लिये
प्रशंसा से भर जाएं और अपने अधीनों के कुशल-मंगल

के लिये प्रार्थना करें.

नौकर जब अवकाश से लौटा हो तो झल्लाएं नहीं ; उससे पूछें:
-तेरे माँ-बाप कैसे हैं;शादी कैसी रही;
-हो गया क्रिया-कर्म तेरे मामा का,अब तेरी बीवी की तबियत कैसी है;
-हो गया तेरे गाँव के मकान का काम पूरा;

ऐसा थोड़े ही है कि आपने किसी को नौकरी पर रखा हुआ है
तो वो इंसान नहीं है.उसकी विवशताओं से सहानभूति रख कर
तो देखिये..कैसी ख़िदमत करता है वो आपकी.

ये सारी बातें गौ़र करने की हैं...सोचिये तो कि नौकर घर का कितना काम करता है.थोड़ा हम भी तो आदत डाल लें..हमने तो बस बाँस बनना सीख लिया है..ध्यान रखिये आने वाले समय में हमें नौकर नाम का प्राणी आसानी से मिलने वाला नहीं.आज से ही शुरू कीजिये..धीरे-धीरे आदत पड़ ही जाती है..यकी़न जानिये आपको वाक़ई अच्छा लगने लगेगा....ये सारे काम मजबूरी में और मन मानकर करें इसके बजाय खुशी-खुशी क्यों नहीं. अच्छा चलिये मत करिये..सोचिये तो सही कि ये सारी रामायण ठीक है कि नहीं...आज न सही ...उजाले में न सही ..कल से ही ...मुंह अंधेरे ही कीजिये..कोई बात नहीं ..शुरू-शुरू में शर्म आती है..बाद में सब आपको शाबासी देंगे...लिखियेगा मन खोलकर कि मेरी बात आपको अच्छी लगी.हाँ..हाँ...मै समझ गया..मै किसी को नहीं बताउंगा कि मेरे कहने पर आप ऐसा कर रहे हैं . मै यही कहूंगा ये सब आप स्व-प्रेरणा से कर रहे हैं

आँब्ज़रवेशन

फ़ोन आया तो बताते हो..

मै बोल रहा था...!

भैये..बोलो...मैं बोल रहा हूँ
वर्तमान की बात है दादा
बोल रहा था..यानी तुम नहीं हो अभी..
तो क्या बीत चुके हो...

भूत हो क्या ?

आँब्ज़रवेशन

जब वक़्त तय किया तब पहुँचे नहीं
जब बुलाया किसी तो मिले नहीं

हाथ में घडी़ क्यों बांधते हो ?

आँब्ज़रवेशन

हाथ में मोबाइल फ़ोन है....काँल सुनते वक़्त ख़ुद मोबाइल क्यों होते हो ?
कहने वालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं

कौन ढूंढे जवाब दर्दों का
लोग तो बस सवाल करते हैं

-गुलज़ार

मान्यता

कोई कहे के आसमान में करोड़ों सितारे हैं तो हम

झट यक़ीन कर लेते हैं....यदि कोई कहे

ज़रा बचके..यहाँ दरवाज़े पर लगा पेंट

अभी गीला है

तो हम हाथ लगा कर सुनिश्चित करते हैं

पेंट गीला है या नहीं

जीवन की क़ीमत

का़मयाबी के लिये ज़िन्दगी

को बडी़ क़ीमत चुकानी पड़ती है.

इसके बजाय यूं कहना बेहतर होगा

कि ज़िन्दगी ही चुकानी पड़ती है.

ये अलग बात है कि आजकल

ज़िन्दगी की कोई क़ीमत नहीं

की़मत की ही की़मत है.

(विचार प्रेरणा:श्री प्रमोद महाजन का निधन)

नसीहत

यदि आप अपनी नाक को बचा कर रखना चाहते हैं
तो ज़बान सम्हाल कर रखिये.

नसीहत

तहज़ीब सिखा दी एक छोटे से मकान ने
दरवाज़े पर लिखा था ज़रा झुककर चलिये


बताती है हमको दिल की हर धड़कन
मौत का कारवां रवाँ है धीरे-धीरे

शुभ-विचार

उस मनुष्य से अधिक दरिद्र कोई नही; जिसके पास केवल पैसा है.
-एडविन पग.

शुभ-विचार

नदी के शांत प्रवाह में

मात्र एक कंकड़ से

कोलाहल हो जाता है ;

किंतु जल की धारा धीर-गंभीर और

संयत रूप से पुन:प्रवाहित होती रहती है...


क्षमा-याचना इसी धारा के समान पुनीत होती है.

पुनीत होने के लिये जल-प्रवाह बनना आवश्यक है.

शुभ-विचार

आचरण में अच्छाई से अमरत्व प्राप्त हो सकता है.