एक नौजवान, जो कि विश्वविद्यालय का छात्र था, एक शाम अपने प्रोफ़ेसर के साथ पैदल घूमने निकला। प्रोफ़ेसर अपने छात्र-छात्राओं से मित्र जैसा व्यवहार करते थे और अपनी सहृदयता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। चलते-चलते दोनों जंगल में दूर निकल गए। रास्ते में उन्हें पुराने जूतों की एक जोड़ी पड़ी मिली। ये जूते एक ग़रीब किसान के थे जो पास के खेत में काम कर रहा था, और जिसका उस दिन का काम लगभग समाप्त हो चला था।
नौजवान ने प्रोफ़ेसर से कहा, "आईए सर, हम उस आदमी से मज़ाक करते हैं। उसके जूते कहीं छुपा देते हैं और हम दोनों झाड़ी में छुप जाते हैं। जब जूते नहीं दिखेंगे तो उस आदमी को परेशान होता देख बड़ा आनंद आएगा।' प्रोफ़ेसर ने कहा, "मेरे दोस्त, किसी ग़रीब की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक नहीं। तुम अमीर हो इसलिए तुम्हें ऐसे काम में मज़ा मिल सकता है। मेरी मानो तो ग़रीब आदमी के हर जूते में एक-एक सिक्का रख दो और मेरे साथ छुप कर उसकी प्रतिक्रिया देखो।' नौजवान ने बात मान ली और सिक्के रखकर अपने प्रोफ़ेसर के साथ झाड़ी के पीछे छुप गया।
थोड़ी देर बाद ही ग़रीब किसान काम को समाप्त कर अपने जूतों के पास आया। उसने कोट पहना तथा एक जूते में पॉंव डाला। जूते में उसे कुछ अड़ा तो उसने हाथ से टटोला और उसे एक सिक्का मिला। उसके चेहरे पर अचानक आश्चर्य के भाव आए और वह बहुत देर तक सिक्के को हाथ में लेकर उलट-पलट कर देखता रहा। उसने आसपास नज़र दौड़ाई पर उसे कोई भी नहीं दिखा। उसने सिक्के को कोट की जेब में रखा और दूसरा जूता पहनने लगा। एक बार फिर उसे बहुत ताज्जुब हुआ जब दूसरे जूते में भी सिक्का मिला। वह बहुत भावुक हो उठा और अपने घुटनों के बल बैठ गया। उसने आसमान की ओर नज़र की तथा प्रार्थना के स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देने लगा। उसने अपनी बीमार एवं लाचार पत्नी तथा घर में भूख से बिलख रहे बच्चों की ओर से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया क्योंकि किसी अनजान व्यक्ति द्वारा उसे ज़रूरत के समय यह मदद मिली थी। उस रात उसके बच्चे भूखे नहीं सोने वाले थे और उसकी पत्नी को दवाई भी मिल रही थी।
नौजवान ने वह दृश्य देखा और बहुत द्रवित हो गया तथा उसकी आँख से आँसू टपकने लगे। प्रोफ़ेसर ने उससे पूछा, "क्या तुम अभी ़ज़्यादा ख़ुश हो या उस समय होते जब तुम उस ग़रीब से मज़ाक करते?' नौजवान बोला, "सर, आज आपने मुझे ऐसा सबक दिया है जिसे मैं जीवनभर नहीं भूलूंगा। मुझे अब इन शब्दों की सच्चाई समझ में आ रही है जो मैं पहले कभी नहीं समझ पाया।
वे शब्द हैं,......"पाने से देना अधिक पुण्य का काम है।'
यदि आप ख़ुशी चाहते हैं:
एक घंटे के लिए..... तो झपकी ले लीजिए
एक दिन के लिए..... तो सैर-सपाटे पर निकल जाईए
एक माह के लिए..... तो शादी कर लीजिए
एक वर्ष के लिए..... तो ढ़ेर सारा धन कमाई
कई वर्षों के लिए..... तो किसी से प्यार कीजिए
जीवनभर के लिए..... तो किसी के लिए कुछ कीजिए
(प्रसन्नता बाँटने और उसका प्यार भरा सबक़ सिखाने वाले मैनेजमेंट गुरू श्री एस. नंद के रचनात्मक प्रयास स्वयं उत्थान को उपरोक्त नीति कथा के लिये विशेष आभार)
नौजवान ने प्रोफ़ेसर से कहा, "आईए सर, हम उस आदमी से मज़ाक करते हैं। उसके जूते कहीं छुपा देते हैं और हम दोनों झाड़ी में छुप जाते हैं। जब जूते नहीं दिखेंगे तो उस आदमी को परेशान होता देख बड़ा आनंद आएगा।' प्रोफ़ेसर ने कहा, "मेरे दोस्त, किसी ग़रीब की भावनाओं से खिलवाड़ करने का हमें कोई हक नहीं। तुम अमीर हो इसलिए तुम्हें ऐसे काम में मज़ा मिल सकता है। मेरी मानो तो ग़रीब आदमी के हर जूते में एक-एक सिक्का रख दो और मेरे साथ छुप कर उसकी प्रतिक्रिया देखो।' नौजवान ने बात मान ली और सिक्के रखकर अपने प्रोफ़ेसर के साथ झाड़ी के पीछे छुप गया।
थोड़ी देर बाद ही ग़रीब किसान काम को समाप्त कर अपने जूतों के पास आया। उसने कोट पहना तथा एक जूते में पॉंव डाला। जूते में उसे कुछ अड़ा तो उसने हाथ से टटोला और उसे एक सिक्का मिला। उसके चेहरे पर अचानक आश्चर्य के भाव आए और वह बहुत देर तक सिक्के को हाथ में लेकर उलट-पलट कर देखता रहा। उसने आसपास नज़र दौड़ाई पर उसे कोई भी नहीं दिखा। उसने सिक्के को कोट की जेब में रखा और दूसरा जूता पहनने लगा। एक बार फिर उसे बहुत ताज्जुब हुआ जब दूसरे जूते में भी सिक्का मिला। वह बहुत भावुक हो उठा और अपने घुटनों के बल बैठ गया। उसने आसमान की ओर नज़र की तथा प्रार्थना के स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देने लगा। उसने अपनी बीमार एवं लाचार पत्नी तथा घर में भूख से बिलख रहे बच्चों की ओर से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया क्योंकि किसी अनजान व्यक्ति द्वारा उसे ज़रूरत के समय यह मदद मिली थी। उस रात उसके बच्चे भूखे नहीं सोने वाले थे और उसकी पत्नी को दवाई भी मिल रही थी।
नौजवान ने वह दृश्य देखा और बहुत द्रवित हो गया तथा उसकी आँख से आँसू टपकने लगे। प्रोफ़ेसर ने उससे पूछा, "क्या तुम अभी ़ज़्यादा ख़ुश हो या उस समय होते जब तुम उस ग़रीब से मज़ाक करते?' नौजवान बोला, "सर, आज आपने मुझे ऐसा सबक दिया है जिसे मैं जीवनभर नहीं भूलूंगा। मुझे अब इन शब्दों की सच्चाई समझ में आ रही है जो मैं पहले कभी नहीं समझ पाया।
वे शब्द हैं,......"पाने से देना अधिक पुण्य का काम है।'
यदि आप ख़ुशी चाहते हैं:
एक घंटे के लिए..... तो झपकी ले लीजिए
एक दिन के लिए..... तो सैर-सपाटे पर निकल जाईए
एक माह के लिए..... तो शादी कर लीजिए
एक वर्ष के लिए..... तो ढ़ेर सारा धन कमाई
कई वर्षों के लिए..... तो किसी से प्यार कीजिए
जीवनभर के लिए..... तो किसी के लिए कुछ कीजिए
(प्रसन्नता बाँटने और उसका प्यार भरा सबक़ सिखाने वाले मैनेजमेंट गुरू श्री एस. नंद के रचनात्मक प्रयास स्वयं उत्थान को उपरोक्त नीति कथा के लिये विशेष आभार)
3 comments:
पाने से देना अधिक पुण्य का काम है।'
--बहुत सुन्दर संदेश है.
लाइटर साईड में- इसी लिये टिप्पणी बिना मिले भी दिये जा रहे हैं. :) पुण्य का काम है.
एक शानदार बोध कथा... मजा आ गया...
"एक माह के लिये.... तो शादी करें" हा हा हा हा.. क्या खूब लिखा है..
सुंदर आलेख.
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