Wednesday, July 18, 2007

ज़िन्दगी को उजाला देती एक सह्र्दय जैन संत की बानी

सवा लाख कि.मी. पद-यात्रा कर चुके,पचपन वर्ष पूर्व दीक्षा ले चुके,बंगाल में जन्मे,नौ भाषाओं के जानकार और स्वामी विवेकानंद को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का सर्जक मानने वाले जैन संत आचार्य पदमसागरसूरीश्वरजी इन दिनो चातुर्मास बेला में मालवा की सांस्कृतिक राजधानी इन्दौर पधारे हुए हैं. वे एक उदभट वक्ता,गूढ़ चिंतक और धर्म के बारे में अत्यंत सह्र्दय दृष्टिकोण रखने वाले सुह्र्द संत हैं...आज ज़माने को दर-असल ऐसे ही मार्गदर्शकों की ज़रूरत है..उनकी वाणी से निकली ये सूक्तियाँ हमारे मानस को वाक़ई एक नये सोच की ओर प्रशस्त करती है.....
-चैक या ड्राफ़्ट में यदि कोई तकनीकी भूल हो तो बैंक उसे स्वीकार नहीं करती; लौटा देती है. ठीक उसी प्रकार प्रार्थना में पश्चाताप न हो ; संसार की याचना और वासना रूपी तकनीके भूल हो तो वह भी अस्वीकृत हो जाती है.ऐसी कितनी ही प्रार्थनाएं आज तक लौट आईं हैं,उन पर रिमार्क लिखा है...कृपया सुधार कर भेजें.

-मौत से न अपने परिजन बचा सकते हैं , न ही अपना मकान.मज़बूत दीवारें भी मौत को नहीं रोक सकती,न चौकीदार हाथ पकड़ सकता है मौत का ! न कोई डाँक्टर हमें मौत के भय से मुक्त कर सकता है और न ही कोई वक़ील मौत के समक्ष स्टे-आँर्डर ला सकता है..जीवन मृत्यु से घिरा है.केवल अध्यात्म चिंतन ही एकमात्र सुरक्षा कवच है.

-मै सभी का हूँ; सभी मेरे है; मनुष्य के कल्याण में प्रार्थनारत है मेरी भावनाएं.मै किसी वर्ग,वर्ण,समाज या जाति के लिये नहीं; सबके लिये हूँ.मै ईसाइयों का पादरी,मुस्लिमों का फ़कीर,हिन्दुओं का संन्यासी और जैनियों का आचार्य हूँ..आप जिस रूप में चाहे मुझे देख सकते हैं.

- क़ब्र में सोये मुर्दे ने आवाज़ दी...मुझे कौन यहाँ छोड़ गया ?
मेरी पास धन-मकान-ज़ेवर सब कुछ तो था ..मुझे यहाँ अकेला कौन छोड़ गया ?
वहीं से गुज़रते एक कवि ने उत्तर दिया....
सब्र कर..तुझे छोड़ने कोई तेरा दुश्मन नहीं आया था यहाँ.
जिनके लिये तूने सब कुछ किया; वही तेरे सगे वाले तुझे यहाँ आकर छोड़ गये हैं.

- हिन्दु सच्चा हिन्दु बने और गीता के आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करे;
मुसलमान पाक मुसलमान बन जाए और क़ुरान की आयतों को ज़िन्दगी में उतारे;
जैन वास्तविक जैन बन जाए और महावीर की वाणी का अनुसरण करे;
ईसाई खरा ईसाई बने और बाइबल के बतलाए रास्ते पर चल पडे़ ;
सब अपने धर्म ग्रंथों को जाँच लें ; कहीं भी अत्याचार,अनाचार,दुर्व्यवहार,
की सीख नहीं मिलेगी...मिलेगी प्रेम की बानी...एक बार अपने धर्म-ग्रथों को
अविकल पढ़ लीजिये....और फ़िर उस रास्ते पर चलिये...देखिये तो सही;
रामराज्य तो क्या स्वर्ग...जन्नत , हैवन ...धरती पर उतरा समझो.

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

हिन्दु सच्चा हिन्दु बने और गीता के आदर्शों को अपने जीवन में चरितार्थ करे;मुसलमान पाक मुसलमान बन जाए और क़ुरान की आयतों को ज़िन्दगी में उतारे;जैन वास्तविक जैन बन जाए और महावीर की वाणी का अनुसरण करे;ईसाई खरा ईसाई बने और बाइबल के बतलाए रास्ते पर चल पडे़ ;सब अपने धर्म ग्रंथों को जाँच लें ; कहीं भी अत्याचार,अनाचार,दुर्व्यवहार,की सीख नहीं मिलेगी...मिलेगी प्रेम की बानी...एक बार अपने धर्म-ग्रथों कोअविकल पढ़ लीजिये....और फ़िर उस रास्ते पर चलिये...देखिये तो सही;रामराज्य तो क्या स्वर्ग...जन्नत , हैवन ...धरती पर उतरा समझो.

सचमुच यही सच्चे संत की वाणी है.