Thursday, July 5, 2007

अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर नहीं बनेगा कभी.

अच्छाई और नेकी करने का मौक़ा ईश्वर सबको देता है.कुछ उसे भुना लेते हैं और कर गुज़रते हैं और कुछ सिर्फ़ सोचते ही रहते हैं और भाग्य को कोसते रहते हैं...या दूसरों के भाग्य से कुढ़ते रह्ते हैं.दर-असल हमारा वैचारिक परिवेश इतना आत्म-केंद्रित हो गया है कि अच्छाइयाँ आसपास होते हुए भी हमें नज़र नहीं आतीं.समय की निर्दयता में नेकी , गुमनामी के कोहरे के बीच धुंधली पड़ जाती है.ऐसे आलम में कोई छोटा सा नेक काम होता दिखाई देता है तो वह जुगनू सा होने के बावजूद हैलोजन सा दमकता नज़र आता है.नेक शुरूआत का कोई मुहूर्त नहीं होता..बस ठान लेना पड़ता है..अच्छाई करने की मन में आए तो कर गुज़रो...उसे खु़द करना पड़ता है....अच्छाई को आचरण में लाने का साँफ़्टवेयर कभी बाज़ार में नहीं आनेवाला.

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