Saturday, October 11, 2008

कॉंच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेज़ी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा हमें याद आती है। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक कॉंच की बड़ी बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदे डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज़ आई.. फिर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरू किये। धीरे धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ जहाँ जगह थी वहाँ काफ़ी कंकर समा गए.फिर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भई गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हॉं कहा . अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। वह रेत भी उस जार में जहॉं संभव था बैठ गई। अब छात्र अपनी नादानी पर हॅंसे... फिर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी गई ना ? हॉं... अब तो पूरी भर गई है। सभी ने एक स्वर में कहा। सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकाल कर जार में चाय डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोड़ी सी जगह में सोख ली गई। प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज़ में समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंदे सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात् भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं। छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि हैं। और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने कॉंच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदे नहीं भर पाते, रेत ज़रूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा। मन के सुख के लिये क्या ज़रूरी है ये तुम्हें तय करना है।

अपने बच्चों के साथ खेलो, बग़ीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ। घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फेंकों, मेडिकल चेक-अप करवाओ। टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या ज़रूरी है। बाकी सब तो रेत है। छात्र बड़े ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप' क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले... मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया। इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे लेकिन अपने ख़ास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये।

अपने ख़ास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बॉंट दो। मैंने अभी-अभी यही किया है।

4 comments:

डॉ. अजीत कुमार said...

वाह ! क्या बात कही है आपने संजय भाई. मास्टर जी ने कितने अच्छे उदाहरण से जीवन के सार को समझा दिया.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बढिया है जी और अभी आपकी पोडकास्ट श्री राकेश जी की कविताओँ को सुनने का आनँद लिया है सँजय भाई ..वाह क्या कहने !
बहुत बढिया सुनाई सभी कविताएँ आपने :)

रवि रतलामी said...

ठीक है, ठीक है, अब ये बताइए, कि मेरे साथ चाय पीने आप कब आ रहे हैं?

Yunus Khan said...

सुंदर अति सुंदर ।
अभी अपने मित्रों को बता रहे हैं ।