Friday, November 14, 2008

किसी के दिल में ख़ुशी की गर्माहट भर दीजिए



स्कूल के पहले ही दिन जब वो पॉंचवी कक्षा के बच्चों के सामने खड़ी थीं, उन्होंने असत्य का सहारा लिया। अन्य शिक्षिकाओं के समान उन्होंने भी बच्चों की ओर देख कर कहा कि वो सभी को समान रूप से प्यार करती थीं जबकि यह संभव नहीं था। कारण था, उनके सामने पहली पंक्ति में अस्त-व्यस्त बैठा, एक छोटा सा लड़का, जिसका नाम टैडी स्टॉडर्ड था।

टीचर श्रीमती थॉम्पसन ने पिछले वर्ष भी टैडी को देखा था और यह पाया था कि वो अन्य बच्चों के साथ घुलता-मिलता था, और उसके कपड़े मैले-कुचले रहते थे और अक्सर यही लगता था कि वो कई दिनों से नहाया नहीं था। इतना ही नहीं, कई बार तो उसका व्यवहार बहुत ख़राब और चिड़चिड़ा होता था। स्थिति यहॉं तक आ पहुँची कि टैडी की नोटबुक में लाल स्याही से काटा-पीटी कर उसे शून्य अंक देने में श्रीमती थॉम्पसन को आनंद की अनुभूति होने लगी। जिस स्कूल में श्रीमती थॉम्पसन पढ़ाती थीं, वहॉं बच्चों का पुराना रेकार्ड देखकर उसकी समीक्षा करनी होती थी, और टैडी की फाइल देखने के लिए उन्होंने अंत तक टालमटोली की और आख़िरकार जब उन्होंने फ़ाइल देखी, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

टैडी की पहली कक्षा की टीचर ने लिखा था, "टैडी बहुत ही ख़ुशमिजाज़ और होनहार बच्चा है। वो सफ़ाई से काम करता है और अच्छे आचरण वाला है। उसके साथ हमेशा ख़ुशी मिलती है।' दूसरी कक्षा की टीचर ने लिखा, "टैडी एक श्रेष्ठ विद्यार्थी है जिसे सभी सहपाठी पसंद करते हैं। उसकी मॉं गंभीर बीमारी से जूझ रही है, शायद इसीलिए लगता है कि उसके घर की परिस्थिति संघर्षमय होगी।' तीसरी कक्षा की टीचर ने टिप्पणी की, "टैडी अपनी मॉं की मौत से हिल गया है। वह बहुत मेहनत करने की कोशिश करता है परन्तु उसके पिता उसमें दिलचस्पी नहीं लेते। वह बहुत मेहनत करने की कोशिश करता है परन्तु उसके पिता उसमें दिलचस्पी नहीं लेते। उसकी पारिवारिक ज़िंदगी का बुरा असर उस पर पड़ेगा, यदि जल्द ही कुछ कदम नहीं उठाए गए।' चौथी कक्षा की टीचर का कथन था, "टैडी कहीं खो गया है और स्कूल में उसे ख़ास रूचि नहीं रही। उसके कोई दोस्त नहीं हैं और वो कक्षा में सोने लगा है।'

सारी टिप्पणियॉं पढ़कर श्रीमती थॉम्पसन को टैडी की वास्तविक समस्या समझ में आई और उन्हें ख़ुद पर शर्म आने लगी। उनका मन और दुःखी हुआ जब कक्षा के बच्चे उनके लिए क्रिसमस के ख़ूबसूरत तोहफ़े लाए जो रंगबिरंगे काग़ज़ों में लिपटे और आकर्षक रिबन्स से बंधे थे। अपवाद था तो सिर्फ़ टैडी जिसका उपहार एक साधारण से काग़ज़ से ख़राब तरीके से बांधा गया था। श्रीमती थॉम्पसन ने उपहारों के ढ़ेर से टैडी को उपहार सबसे पहले उठाया जिसका भौंडापन देख कक्षा के सभी बच्चे ज़ोर से हॅंसने लगे। उपहार के बक्से में रंगीन पत्थरों का एक हार था जिसके कुछ पत्थर गायब थे। साथ ही पऱफ़्यूम की एक बोतल थी जिसमें एक चौथाई पऱफ़्यूम बचा था। श्रीमती थॉम्पसन ने बच्चों को डॉंट कर चुप किया और कहा कि वो हार वाकई बहुत सुन्दर था। उन्होंने न केवल हार को पहन लिया बल्कि थोड़ा पऱफ़्यूम भी लगाया। उस दिन टैडी स्टॉडर्ड बहुत देर तक स्कूल में रूक कर उस क्षण का इन्तज़ार करता रहा जब उसने अपनी टीचर से कहा, "श्रीमती थॉम्पसन, आज आपमें से मुझे वही ख़ुशबू आई जो मुझे मेरी मॉं के पास से आती थी।' यह सुनने के बाद, जब बच्चे चले गए तो श्रीमती थॉम्पसन फूट-फूट कर रोने लगीं और बहुत देर तक चुप न हो सकीं। उसी दिन से उन्होंने लिखना, पढ़ना, गणित या भूगोल सब छोड़ दिया और ’बच्चों को पढ़ाना' अपना लिया। अब टैडी की ओर उनका विशेष ध्यान रहता।

श्रीमती थॉम्पसन का साथ एवं ध्यान मिला तो टैडी का मस्तिष्क जागृत होने लगा। जितना वो टैडी को प्रोत्साहित करतीं उतना ही वो तीक्ष्ण होता जाता। साल ख़त्म होते-होते टैडी अपनी कक्षा के सबसे मेधावी छात्रों में अव्वल रहने लगा। श्रीमती थॉम्पसन का यह झूठ कि वो सब बच्चों का एक समान चाहती हैं, झूठ ही बना रहा क्योंकि वे टैडी को विशेष रूप से प्यार करती थीं।

एक साल बाद टीचर को टैडी का लिखा एक नोट मिला जिसमें उसने लिखा था कि अपनी पूरी ज़िंदगी में उसे श्रीमती थॉम्पसन से अच्छी टीचर नहीं मिलीं। और छह वर्ष गुज़र गए जब टैडी का ख़त उन्हें मिला। लिखा था कि उसने हाई - स्कूल की परीक्षा तीसरे नंबर पर रहते हुए पास कर ली थी, और श्रीमती थॉम्पसन ही उसके जीवन की सर्वश्रेष्ठ टीचर थीं। इसके चार वर्षों पश्चात टैडी ने अपनी प्यारी टीचर को पुन: लिखा कि उसका जीवन कठिनाईयों में बीता पर उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी और वह शीघ्र ही कॉलेज से विशेष योग्यता प्राप्त स्नातक बनने वाला था और अब तक श्रीमती थॉम्पसन से श्रेष्ठ टीचर उसने नहीं देखी। वे सर्वश्रेष्ठ भी थीं और टैडी की सबसे अधिक पसंदीदा टीचर भी। फिर चार वर्ष बीते, और एक पत्र टीचर के नाम। लिखा था कि उसे उपाधि मिल गई थी पर वह और पढ़ना चाहता था। श्रीमती थॉम्पसन से अच्छी कोई टीचर अब भी नहीं थीं।हाँ टैडी के नाम में अब एक अंतर नाम का आ गया था.... अब वह जाना जाता है थियोडोर एफ़.स्टॉडर्ड, एम.डी.; के नाम से.

कहानी यहॉं समाप्त नहीं हुई। एक और पत्र उस वर्ष वसन्त ॠतु में टैडी ने लिखा। यह कि उसे एक लड़की से प्यार हो गया था और उन्होनें शादी करने का फैसला कर लिया है। उसने लिखा कि कुछ समय पूर्व उसके पिताजी की मृत्यु हो गई थी और श्रीमती थॉम्पसन से निवेदन किया कि क्या वो विवाह संस्कार में उसकी मॉं के लिए सुरक्षित स्थान पर बैठ सकती थीं ? निःसंदेह श्रीमती थॉम्पसन टैडी की शादी में सम्मिलित हुईं। विशेष बात यह थी कि समारोह में उन्होनें टैडी द्वारा सालों पूर्व भेंट में दिया रंगीन पत्थरों का हार पहना तथा वो ही पऱफ़्यूम लगाया जिसकी ख़ुशबू टैडी के दिलोदिमाग में बसी थी।

टैडी और श्रीमती थॉम्पसन एक-दूसरे से चिपट गए और टैडी ने उनके कानों में धीरे से कहा, "मुझमें इतना विश्वास दिखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, मॉं। इसलिए भी धन्यवाद आपने मुझे मेरा महत्व समझाया और यह हिम्मत दी कि मैं भी जीवन में कुछ कर सकता हूँ।" आँखों से बहती अश्रुधारा के साथ श्रीमती थॉम्पसन बोलीं, "तुम गलत कह रहे हो, टैडी। वह तुम ही थे जिसने मुझे सिखाया कि मैं कुछ बदलाव ला सकती हूँ। जब तक तुमसे नहीं मिली थी, मुझे पढ़ाना आता ही कहॉं था ?


इस प्यारी सी कहानी को पढ़ते-पढ़ते आँखें नम हो जाती हैं।

मित्रों, आज ही किसी के दिल में खुशी की गर्माहट भर दीजिए..... यह संदेश औरों तक पहुँचाइए.... किसी की ज़िंदगी में आज कुछ फ़र्क़ लाइए, कल कुछ बदलाव लाइए। दिल से किए गए उदारता के छोटे-छोटे कार्य जीवन में अमिट छाप छोड़ते हैं।

आपको भी तो मिला है एक उदार दिल !

आपकी जानकारी के लिए विशेष:

-टैडी स्टॉडर्ड डेस्मॉइन्स के आयोवा मेथॉडिस्ट में डॉक्टर हैं जहां पर स्टॉडर्ड कैंसर विंग की स्थापना की गई है।

-यह नीतिकथा प्रसन्नता बाँटने वाले मैनेजमेंट सलाहकार श्री एस.नंद के संस्थान स्वयं उत्थान के परिपत्र से साभार

9 comments:

mehek said...

kya kahu bahut marmsprashi vakiya hai,sach kuch thoda pyar kisi ki zindagi mein muskan la sakta hai,bahut sundar

डॉ .अनुराग said...

आपने आज रात में एक खुशनुमा अहसास भर दिया है ओर नई उमंग भी !शुक्रिया

शोभा said...

आपका कहना एकदम सही है किसी के दिल में उम्मीद जगा दो अथवा किसी के ओठों पर मुस्कान ला दो- इससे बड़ा कार्य कोई नहीं हो सकता। सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें।

Alpana Verma said...

bahut hi prerak prasang hai.

sach mein kisi mein vishwas jaga dene bhar se us mein kitna badlaav ho sakta hai..bahut se udaharan hamen apne aas paas bhi mil jayengey...umeed hai sabhi is baat ko samjhen aur kisi ko kabhi under estimate na karen..kabhi kabhi do shbad hausle ke bahut aatm vishwas jagaa jaatey hain.

L.Goswami said...

आँखे भींग आई है ..प्रेरक प्रसंग है बहुत धन्यवाद इसे यहाँ लिखने के लिए.अपनों को खोकर इन्सान परायों में अपने खोजता है ..खुस किस्मत हैं वो जिन्हें ऐसे लोग मिलते हैं

सागर नाहर said...

सचमुच आँखें नम हो गई।
इतनी सुन्दर पोस्ट मैं कितने दिनों तक पढ़ ही नहीं पाया और शायद कईयो ने अभी तक नहीं पढ़ी होगी।
अब तक लिखी गई सर्वश्रेष्ठ हिन्दी चिट्ठा लेखों में से एक। दिल को छू लेने वाली।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

Dr. G. S. NARANG said...

bahut hi sunder aur dil ko chu lene wali prastuti.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर व मार्मिक कहानी है।एक प्रेरणा दायक कहानी के लिए आभार।

indianrj said...

पढ़ते पढ़ते आखिर में आँखें भर ही आयीं. एक इच्छा है कि कितना अच्छा हो अगर ये कहानी सब लोग पढ़ सकें. एक आत्मबोध हुआ कहीं न कहीं हम लोगों से गलती हो ही जाती हैं बच्चों को समझने में. काश मैंने ये कुछ वर्षों पहले पढ़ ली होती!