आपके यहां किसी का पत्र आया
किसी ने शादी का निमंत्रण भेजा
किसी का एस.एम.एस.आया.
आप तो सुस्त बैठे हैं भाई...
किसी ने किसी खा़स वजह से आपको याद किया होगा.
आपका नाम याद किया होगा.
आपका पता ढूंढा होगा.
टिकिट चिपकाया होगा.
कुरियर वाले तक देने गया होगा.
निमंत्रण होगा तो हो सकता है
खु़द देने आया होगा
एस.एम.एस.किया होगा तो भी दो-तीन मिनट तो लगे ही होंगे
टाइप करने में
और हां ई-मेल किया होगा (दो मिनट मान लेते हैं कि किसी और की मेल ही फ़ाँरवर्ड की होगी)
आप जवाब तो दीजिये हुज़ूर ....क्या कहा लिखना नहीं आता..
कोई बात नहीं ...सिर्फ़ इतना लिख दीजिय धन्यवाद...
छोटा हो गया...चलिये मै लिख देता हूं एक सर्व-कालिक ..सर्व-अवसर-सर्व-प्रसंग
यानी all occasions जवाब...लेकिन एक वादा चाहिये..आप किसी भी आमंत्रण या संदेश या कम्युनिकेशनको अनुत्तरित नहीं रखेंगे.
प्रिय...आदरणीय....आत्मन..(उम्र और संबंध के हिसाब से तय कर लें)
आपका आमंत्रण / पत्र / संदेश मिला.
आभारी हूं...आपने स्नेहपूर्वक याद किया.
कामना करता हूं/करती हूं कि आपका आयोजन
उल्लासपूर्ण संपन्न होगा/हो गया होगा.
आपके पूरे परिवार/संस्थान को मेरी बधाइयाँ.
आगे भी यही आत्मीयता बनाए रखियेगा.
मंगलकामनाओं के साथ.....
Friday, June 29, 2007
शुभ-विचार
सिर्फ़ उसी से कुछ ग़लत नही होता
जो कुछ करता ही नहीं
पहले अपनी उपलब्धियों का मूल्यांकन करो
फ़िर कोई ख़तरा मोल लो.
जब एक बूढा़ आदमी मरता है तो एक
लायब्रेरी जल कर खा़क हो जाती है.
जो एक विद्यालय खोलता है;
वह एक जेल बंद करता है.
जो कुछ करता ही नहीं
पहले अपनी उपलब्धियों का मूल्यांकन करो
फ़िर कोई ख़तरा मोल लो.
जब एक बूढा़ आदमी मरता है तो एक
लायब्रेरी जल कर खा़क हो जाती है.
जो एक विद्यालय खोलता है;
वह एक जेल बंद करता है.
Wednesday, June 27, 2007
शुभ-विचार
अच्छाई करने का अवसर ईश्वर सबको
देता है....बिरले ही होते हैं जो इस अवसर
को भुना पाते हैं.जो ऐसा कर गुज़रता है;
आत्मिक शांति पाता है.
जो नहीं कर पाता वह भाग्य को कोसता
ही रहता है और चिढ़ता उन लोगों से
जो किसी के लिये कुछ अच्छा कर के
आनन्दित रहते हैं
देता है....बिरले ही होते हैं जो इस अवसर
को भुना पाते हैं.जो ऐसा कर गुज़रता है;
आत्मिक शांति पाता है.
जो नहीं कर पाता वह भाग्य को कोसता
ही रहता है और चिढ़ता उन लोगों से
जो किसी के लिये कुछ अच्छा कर के
आनन्दित रहते हैं
जीवन की गंध
जीवन में अनेक जटिलताएं हैं.
जीवन के सुख-दु:ख हमारे सोच पर निर्भर हैं.
इस सच पर कि हम अपने जीवन को किस तरह लेते हैं कि हमारी
ज़िन्दगी का दाख़िल-खा़रिज क्या है ?
एक बार यह स्पष्ट हो जाए तो कई चीज़ें आसान हो जाती हैं.
जब तक यह नहीं होता; हम भटकते रहेंगे....क्लांत और अशांत.
इससे बचने के लिये आवश्यकता है स्वयं को साधने की.
अपने को पहचानने की..किंतु ऐसा प्राय: अनुभव और चिंतन से ही
संभव है.
आत्म-समीक्षा से बढ़कर कोई विश्वविद्यालय नहीं है
जहाँ आप अपने को दीक्षित कर सकते हैं.
आचरण की शुचिता और चरित्र की उदात्तता से
आप अपने जीवन में रस घोल सकते हैं
जीवन के सुख-दु:ख हमारे सोच पर निर्भर हैं.
इस सच पर कि हम अपने जीवन को किस तरह लेते हैं कि हमारी
ज़िन्दगी का दाख़िल-खा़रिज क्या है ?
एक बार यह स्पष्ट हो जाए तो कई चीज़ें आसान हो जाती हैं.
जब तक यह नहीं होता; हम भटकते रहेंगे....क्लांत और अशांत.
इससे बचने के लिये आवश्यकता है स्वयं को साधने की.
अपने को पहचानने की..किंतु ऐसा प्राय: अनुभव और चिंतन से ही
संभव है.
आत्म-समीक्षा से बढ़कर कोई विश्वविद्यालय नहीं है
जहाँ आप अपने को दीक्षित कर सकते हैं.
आचरण की शुचिता और चरित्र की उदात्तता से
आप अपने जीवन में रस घोल सकते हैं
Tuesday, June 26, 2007
चेहरे की असली चमक
मेरा दोस्त प्रतिदिन दूकान के नौकर को नाश्ते के पैसे देता है
आज दोपहर में ही दूकान बंद कर एक विवाह में भाग लेने
कहीं बाहर जाने के लिये शटर बंद कर रहा था.संयोग से
मैं पहुँचा..उसने कहा आज नौकर खु़श हैं ..
आधे दिन की छुट्टी जो हो रही है.
मैने कहा आज नाश्ते के पैसे दिये कि नहीं ?
वो बोला आप कहते हैं तो दे देता हूं ;
वैसे नाश्ते के पैसे दोपहर बाद देता हूँ.
मैने कहा आप तो विवाह समारोह में जा रहे हैं और दूकान अभी बंद हो रही है ,
इन्हे भी तो कभी-कभी मज़ा करवा दीजिये .मेरा दोस्त वाक़ई सदाशय है..
उसने बिना देरी किये झट से ड्राँअर खोला और पैसे बाँट दिये.
नौकरों के चेहरे ज़्यादा चमक रहे थे..
आधे दिन की छुट्टी..और नाश्ते के पैसे भी.
दूसरे दिन दोस्त से बात हुई..मैने पूछा
कैसी रही शादी...वो बोला अच्छी...सच कहूं नौकरों को नाश्ते के
पैसे देने में जो मज़ा आया और जो सुकून मिला उससे शादी
में जाने का आनन्द भी द्विगुणित हो गया और एक तसल्ली भी रही मन में
कि हम तो किसी भी क़ीमत पर मज़े मार लेते हैं ; बेचारे नौकरों का क्या !
नाश्ते के लिये बमुश्किल सौ रूपये बाँटे और शादी में आने जाने और शगुन करने में
चार हज़ार ख़र्च हो गये; लेकिन प्रेम से नौकरों को दी गई भेंट से एक और रहस्य उजागर हुआ
दूल्हा को ढा़ई हज़ार की अंगूठी दी जबकि नौकरों को सिर्फ़ सौ रूपये बाँटे
लेकिन नौकरों के चेहरे की चमक दूल्हे की चमक से ज़्यादा तेज़ नज़र आ रही थी.
आज दोपहर में ही दूकान बंद कर एक विवाह में भाग लेने
कहीं बाहर जाने के लिये शटर बंद कर रहा था.संयोग से
मैं पहुँचा..उसने कहा आज नौकर खु़श हैं ..
आधे दिन की छुट्टी जो हो रही है.
मैने कहा आज नाश्ते के पैसे दिये कि नहीं ?
वो बोला आप कहते हैं तो दे देता हूं ;
वैसे नाश्ते के पैसे दोपहर बाद देता हूँ.
मैने कहा आप तो विवाह समारोह में जा रहे हैं और दूकान अभी बंद हो रही है ,
इन्हे भी तो कभी-कभी मज़ा करवा दीजिये .मेरा दोस्त वाक़ई सदाशय है..
उसने बिना देरी किये झट से ड्राँअर खोला और पैसे बाँट दिये.
नौकरों के चेहरे ज़्यादा चमक रहे थे..
आधे दिन की छुट्टी..और नाश्ते के पैसे भी.
दूसरे दिन दोस्त से बात हुई..मैने पूछा
कैसी रही शादी...वो बोला अच्छी...सच कहूं नौकरों को नाश्ते के
पैसे देने में जो मज़ा आया और जो सुकून मिला उससे शादी
में जाने का आनन्द भी द्विगुणित हो गया और एक तसल्ली भी रही मन में
कि हम तो किसी भी क़ीमत पर मज़े मार लेते हैं ; बेचारे नौकरों का क्या !
नाश्ते के लिये बमुश्किल सौ रूपये बाँटे और शादी में आने जाने और शगुन करने में
चार हज़ार ख़र्च हो गये; लेकिन प्रेम से नौकरों को दी गई भेंट से एक और रहस्य उजागर हुआ
दूल्हा को ढा़ई हज़ार की अंगूठी दी जबकि नौकरों को सिर्फ़ सौ रूपये बाँटे
लेकिन नौकरों के चेहरे की चमक दूल्हे की चमक से ज़्यादा तेज़ नज़र आ रही थी.
जीवन लीला
मैने पिता को फ़ोन लगाया
उनका स्वर भर्राया था.
मैने पूछा आवाज़ भारी क्यों है आपकी ?
उन्होने कहा..
बस अभी सोकर उठा हूँ..
मै पूछ नहीं पाया..
तबियत तो ख़राब नहीं आपकी ?
डर रहा था...
कहीं अस्पताल/डाँक्टर के यहाँ ले चलने को न कह दें.
उनका स्वर भर्राया था.
मैने पूछा आवाज़ भारी क्यों है आपकी ?
उन्होने कहा..
बस अभी सोकर उठा हूँ..
मै पूछ नहीं पाया..
तबियत तो ख़राब नहीं आपकी ?
डर रहा था...
कहीं अस्पताल/डाँक्टर के यहाँ ले चलने को न कह दें.
जीवन लीला
मैने बच्चे से कहा
बेटा ज़रा नीचे वाली मंज़िल पर
मेरी टेबल पर मेरे मोबाइल का
चार्जर रखा है ....ला दो
उसने सुना नहीं
मैने अपनी बात को दोहराया
उसने टीवी की आवाज़ बढा़ दी.
मैने कहा बेटा ला दो प्लीज़.
उसने फिर नहीं सुना.
मैने नि:ष्कर्ष निकाला ..थोडा़ कड़वा है
जो निचली मंज़िल से चार्जर न लाकर दे
वह अस्पताल की निचली मंज़िल से एक्स-रे रिपोर्ट,
कैसे लाएगा ? यूरीन सेम्पल पैथ-लैब में देने कैसे जाएगा ?
और आपके मरने पर स्मशान तक कंधे पर उठा कर ले जाएगा ?
मुझे लगता है मै ग़लतफ़हमी में जी रहा हूँ !
बेटा ज़रा नीचे वाली मंज़िल पर
मेरी टेबल पर मेरे मोबाइल का
चार्जर रखा है ....ला दो
उसने सुना नहीं
मैने अपनी बात को दोहराया
उसने टीवी की आवाज़ बढा़ दी.
मैने कहा बेटा ला दो प्लीज़.
उसने फिर नहीं सुना.
मैने नि:ष्कर्ष निकाला ..थोडा़ कड़वा है
जो निचली मंज़िल से चार्जर न लाकर दे
वह अस्पताल की निचली मंज़िल से एक्स-रे रिपोर्ट,
कैसे लाएगा ? यूरीन सेम्पल पैथ-लैब में देने कैसे जाएगा ?
और आपके मरने पर स्मशान तक कंधे पर उठा कर ले जाएगा ?
मुझे लगता है मै ग़लतफ़हमी में जी रहा हूँ !
जीवन लीला
बच्चे जब बहस कर के बड़ों
को जवाब देने लगते हैं तो दु:ख होता है....
लाज़मी है.
लेकिन यह भी सोचें कि आपने भी
तो अपने अभिभावकों से ऐसी ही
मुंहजोरी की थी.
हुज़ूर आपके साथ बच्चे दुर्व्यवहार नहीं कर रहे...
वे तो आपको फ़्लैश-बैक दिखा रहे हैं..उसी फ़िल्म का
जिसके मौन पात्र आपके माता-पिता थे...
बरसों पहले.
को जवाब देने लगते हैं तो दु:ख होता है....
लाज़मी है.
लेकिन यह भी सोचें कि आपने भी
तो अपने अभिभावकों से ऐसी ही
मुंहजोरी की थी.
हुज़ूर आपके साथ बच्चे दुर्व्यवहार नहीं कर रहे...
वे तो आपको फ़्लैश-बैक दिखा रहे हैं..उसी फ़िल्म का
जिसके मौन पात्र आपके माता-पिता थे...
बरसों पहले.
Monday, June 25, 2007
शुभ-विचार
हम बुलंदियों के शिखर तक
यश के झोंकों में उड़ते भले ही पहुँच जाएँ,
लेकिन ज़मीन की ग़र्द के उन कणों को न भूलें,
जो हमें बुलंदियों तक पहुँचाने के लिये
खु़द हवा के थपेडे़ खाते रहे हैं
यश के झोंकों में उड़ते भले ही पहुँच जाएँ,
लेकिन ज़मीन की ग़र्द के उन कणों को न भूलें,
जो हमें बुलंदियों तक पहुँचाने के लिये
खु़द हवा के थपेडे़ खाते रहे हैं
Saturday, June 23, 2007
अपने नौकर खुद बनिये
इतना तो आप कर ही सकते हैं
कमरे की लाइट आँफ़ करें
कूलर में पानी भरें
आंगन के गमलों में पानी दें
बिजली का बिल भरने जाएं
घर में इकठ्ठा हुआ कचरा फ़ैकने जाएं
जिस कमरे से बाहर जा रहे हों
उस कमरे के रेडियो-टीवी का स्विचआँफ़ करें
दिमाग़ जब ठंडा हो परिजनों के लिये
प्रशंसा से भर जाएं और अपने अधीनों के कुशल-मंगल
के लिये प्रार्थना करें.
नौकर जब अवकाश से लौटा हो तो झल्लाएं नहीं ; उससे पूछें:
-तेरे माँ-बाप कैसे हैं;शादी कैसी रही;
-हो गया क्रिया-कर्म तेरे मामा का,अब तेरी बीवी की तबियत कैसी है;
-हो गया तेरे गाँव के मकान का काम पूरा;
ऐसा थोड़े ही है कि आपने किसी को नौकरी पर रखा हुआ है
तो वो इंसान नहीं है.उसकी विवशताओं से सहानभूति रख कर
तो देखिये..कैसी ख़िदमत करता है वो आपकी.
ये सारी बातें गौ़र करने की हैं...सोचिये तो कि नौकर घर का कितना काम करता है.थोड़ा हम भी तो आदत डाल लें..हमने तो बस बाँस बनना सीख लिया है..ध्यान रखिये आने वाले समय में हमें नौकर नाम का प्राणी आसानी से मिलने वाला नहीं.आज से ही शुरू कीजिये..धीरे-धीरे आदत पड़ ही जाती है..यकी़न जानिये आपको वाक़ई अच्छा लगने लगेगा....ये सारे काम मजबूरी में और मन मानकर करें इसके बजाय खुशी-खुशी क्यों नहीं. अच्छा चलिये मत करिये..सोचिये तो सही कि ये सारी रामायण ठीक है कि नहीं...आज न सही ...उजाले में न सही ..कल से ही ...मुंह अंधेरे ही कीजिये..कोई बात नहीं ..शुरू-शुरू में शर्म आती है..बाद में सब आपको शाबासी देंगे...लिखियेगा मन खोलकर कि मेरी बात आपको अच्छी लगी.हाँ..हाँ...मै समझ गया..मै किसी को नहीं बताउंगा कि मेरे कहने पर आप ऐसा कर रहे हैं . मै यही कहूंगा ये सब आप स्व-प्रेरणा से कर रहे हैं
आँब्ज़रवेशन
फ़ोन आया तो बताते हो..
मै बोल रहा था...!
भैये..बोलो...मैं बोल रहा हूँ
वर्तमान की बात है दादा
बोल रहा था..यानी तुम नहीं हो अभी..
तो क्या बीत चुके हो...
भूत हो क्या ?
मै बोल रहा था...!
भैये..बोलो...मैं बोल रहा हूँ
वर्तमान की बात है दादा
बोल रहा था..यानी तुम नहीं हो अभी..
तो क्या बीत चुके हो...
भूत हो क्या ?
मान्यता
कोई कहे के आसमान में करोड़ों सितारे हैं तो हम
झट यक़ीन कर लेते हैं....यदि कोई कहे
ज़रा बचके..यहाँ दरवाज़े पर लगा पेंट
अभी गीला है
तो हम हाथ लगा कर सुनिश्चित करते हैं
पेंट गीला है या नहीं
झट यक़ीन कर लेते हैं....यदि कोई कहे
ज़रा बचके..यहाँ दरवाज़े पर लगा पेंट
अभी गीला है
तो हम हाथ लगा कर सुनिश्चित करते हैं
पेंट गीला है या नहीं
जीवन की क़ीमत
का़मयाबी के लिये ज़िन्दगी
को बडी़ क़ीमत चुकानी पड़ती है.
इसके बजाय यूं कहना बेहतर होगा
कि ज़िन्दगी ही चुकानी पड़ती है.
ये अलग बात है कि आजकल
ज़िन्दगी की कोई क़ीमत नहीं
की़मत की ही की़मत है.
(विचार प्रेरणा:श्री प्रमोद महाजन का निधन)
को बडी़ क़ीमत चुकानी पड़ती है.
इसके बजाय यूं कहना बेहतर होगा
कि ज़िन्दगी ही चुकानी पड़ती है.
ये अलग बात है कि आजकल
ज़िन्दगी की कोई क़ीमत नहीं
की़मत की ही की़मत है.
(विचार प्रेरणा:श्री प्रमोद महाजन का निधन)
नसीहत
तहज़ीब सिखा दी एक छोटे से मकान ने
दरवाज़े पर लिखा था ज़रा झुककर चलिये
बताती है हमको दिल की हर धड़कन
मौत का कारवां रवाँ है धीरे-धीरे
दरवाज़े पर लिखा था ज़रा झुककर चलिये
बताती है हमको दिल की हर धड़कन
मौत का कारवां रवाँ है धीरे-धीरे
शुभ-विचार
नदी के शांत प्रवाह में
मात्र एक कंकड़ से
कोलाहल हो जाता है ;
किंतु जल की धारा धीर-गंभीर और
संयत रूप से पुन:प्रवाहित होती रहती है...
क्षमा-याचना इसी धारा के समान पुनीत होती है.
पुनीत होने के लिये जल-प्रवाह बनना आवश्यक है.
मात्र एक कंकड़ से
कोलाहल हो जाता है ;
किंतु जल की धारा धीर-गंभीर और
संयत रूप से पुन:प्रवाहित होती रहती है...
क्षमा-याचना इसी धारा के समान पुनीत होती है.
पुनीत होने के लिये जल-प्रवाह बनना आवश्यक है.
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